।। दलाल ।।
।। दलाल ।।
मीडिया दलाल हुआ जाता है,
साहब कमाल हुआ जाता है।
अजूबे देखे बहुत ज़माने में,
अब लोकतंत्र का बुरा हाल हुआ जाता है।
कोई बड़ी बात नहीं जो मीडिया बिक जाए,
झूठ आंखों देखा हाल हुआ जाता है।
मीडिया दलाल हुआ जाता है,
साहब कमाल हुआ जाता है।
ठंड में बरसाते रहो पानी उनपर,
बिछा दो कांटे कितने भी राहों में।
खोद डालो सड़कें सारी,
तानाशाही कितनी भी करलो।
वो झुकने वाले नहीं लेकिन,
उनका जस्बा बेमिसाल हुआ जाता है।
मीडिया दलाल हुआ जाता है,
साहब कमाल हुआ जाता है।
रास आती हैं तुमको महलों की रजाई जब,
उन्हें सड़क की चारपाई भी भा जाती है।
क्या करें सवाल उनके बच्चों का है,
ठंड भी बसंत ही सी भाती है।
लड़ाई तुम्हें हराने की नही उनकी नज़र में,
गैरत की खातिर लड़ना कमाल हुआ जाता है।
मीडिया दलाल हुआ जाता है
साहब कमाल हुआ जाता है
कितनी भी कोशिश कर लो सच को दबाने की,
दबता नहीं और उभर आता है।
क्या होता जो बात कर लेते,
पूछ लेते कि समस्या क्या है।
पर तुम्हारा यूँ चुप रहना, कुछ न कहना,
यही तो समस्या है, जान लो।
उनका फिर भी अपनी बात कहते जाना,
और तुम्हारा न सुनना मुहाल हुआ जाता है।
मीडिया दलाल हुआ जाता है
साहब कमाल हुआ जाता है
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