।। कलम ।।
।। कलम ।।
कलम की आरज़ू इतनी है कि वो लिखती जाए
स्याही काली ही सही पर चलती जाए
और आये कई राजे, महाराजे, नवाब और सुल्तान
और आते भी रहेंगे बहुत राज करने वाले
किसी राजे महाराजे की नहीँ पर ख़ुदा की इबादत में
कलम की आरज़ू इतनी है कि वो लिखती जाए
लिखती जाए कि लिखी गईं थीं इबारतें बहुत
राजे, महाराजे और सुल्तानों की शान में
पर सब के सब दफ़्न हैं आज कब्रगाहों में
किसी का नाम नहीं है कोई लेने वाला
कब तक़ लेता है कोई नाम वैसे भी ज़माने में
मतलबी ज़माने से नाम यूँ ही रिस्ता जाए
छलनी में पानी नहीं टिकता जैसे, रिस जाता है
मतलबी ज़माने से नाम यूँ ही रिस्ता जाए
और इसीलिए
किसी राजे महाराजे की नहीँ पर ख़ुदा की इबादत में
कलम की आरज़ू इतनी है कि वो लिखती जाए
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