।। रिवाज़ ।।
।। रिवाज़ ।।
रिवाज़ों के परिंदे कुछ बेखयाली ने उछाले हैं
गमों का तूफ़ान लेकर देखो कबूतर आया है
कहाँ-कहाँ नहीं ठूँठा था उनको शाम होने तक़
वो छुपते ही चले गए रिवाज़ों का आसरा लेकर
कभी इतनी दुश्मनी मैंने किसी से महसूस नहीं की
के जितनी दुश्मनी इन रिवाज़ों ने मुझसे निभाई है
ज़माना तो वैसे ही बर्बाद है ऐ दोस्त
इन काफिरों ने ही कुछ आबाद रखा है
धर्म को मानने वाले तो रिवाज़ों को मानने वाले निकले
इन्ही काफिरों ने ये धर्म आबाद रखा है
कभी मैं भी जो फंस जाता इन रिवाज़ों की क़ैद में
सवालों को मेरे, मेरे काफ़िर होने ने आबाद रखा है
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