।। किसान ।।
।। किसान ।।
किसान की उगाई हुई फसल
के दाने मैंने खाये हैं
तुमने भी खाए हैं।
उसी के सहारे पेट भर-भर कर
कुछ उम्र मैंने काटी है
कुछ तुमने भी काटी है।
क्या कभी,
लेकिन,
तुमने या मैंने सोचा
कि क्यों
वो ख़ुदा भी
इन पर बेरहम होता है?
क्यों जो दुनिया भर का
पेट भरता है
ख़ुद रह जाता है भूखा?
क्यों अपने ही बच्चों को
इंसाफ़ दिलाने की खातिर
निकलना पड़ता है इन्हें सड़क पर?
क्यों कुर्सियों पर बैठे आका
रहम नहीं खाते इनपर?
क्यों ख़ुदा से लड़ने वाला,
जी हाँ,
ख़ुदा से लड़ने वाला,
ये शख़्स नहीं लड़ पाता
अपनों के आंसुओं से
नहीं लड़ पाता
और झूल जाता है
झूल जाता है
उस रस्सी से
जो बताती है
कि कितना कमज़ोर है
ये समाज अभी भी,
झूल जाता है
उस रस्सी से
जो बताती है कि
कुछ लोग इतना खाते हैं
कि रोटी उगाने वाले को अपना निवाला
भी उन्हें देना पड़ता है,
झूल जाता है
उस रस्सी से
जो बताती है
कि आकाओं का पेट कभी नहीं भरता,
क्यों हैं ये सवाल
अभी भी?
और कब तक़ रहेंगे?
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