।। वक़्त ।।
।। वक़्त ।।
वक़्त की दहलीज नहीं होती
ये चलता रहता है
अकेला, निरंतर, अनवरत।
फिर भी रहता है ताकतवर।
इतना कि झुकना होता है
सबको इसके सामने,
फिर वो राजा हो या रंक।
सबको देखा है इसने आते-जाते
देखी है सबकी चाल
कि कौन, कब, कहाँ लड़खड़ाया
और कौन, कब, कहाँ संभला।
वो वक़्त ही था जो कहना चाहता था,
कहना चाहता था तुझसे कि संभल,
संभल अभी नहीं तो गिर जाएगा
क्योंकि देखा था इसने बहुतों को गिरते हुए।
वो वक़्त ही था तुझे ताक़ीद करना चाहता था
पर तुझे तो अपने पर गुमान था
तू चलता रहा उसी रास्ते
खो दिया संभलने का वो आखिरी मौका भी।
पर इंसान तो ऐसा ही होता है
कभी-कभी सीख भी लेता है
और कभी-कभी भटकता रहता है
भटकता रहता है पूरी ज़िंदगी।
और वक़्त हिदायतें देता रहता है
समझाता रहता है अपने तऱीके से
कभी ठोकर देकर तो कभी इन्तेहान लेकर
और झुकता ही है इंसान वक़्त के सामने।
क्योंकि
वक़्त की दहलीज नहीं होती
ये चलता रहता है
अकेला, निरंतर, अनवरत।
फिर भी रहता है ताकतवर।
इतना कि झुकना होता है
सबको इसके सामने,
फिर वो राजा हो या रंक।
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