।। स्याही ।।

।। स्याही ।।



कभी तो पंहुचेगी ये आग तुम तक भी 
जो लगाई है तुमने
कभी तो उसका फ़ैसला मेरे हक़ में आएगा

और जले हैं जितने भी मकान इस आग में
धुँआ तो एक न एक दिन तेरे घर से भी आएगा

आएगा तू भी एक दिन ज़द में इसी आग के
के पैगाम मेरा ज़रूर उस रब तक़ जाएगा

तूने सोचा था कि भाग जाएगा तू आग लगाकर
पर ऐसा नहीं होता, तेरा किया एक दिन तुझे याद आएगा

उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती
तूने अगर तड़पाया है तो तुझे वो भी एक दिन तड़पायेगा

ये बात आंखों देखी है मेरी 
कि लिखता रहता है वो 
तेरी और मेरी किस्मत
कलम उसकी ज़रूर होती है
लेकिन स्याही तो तू ही लेके जाएगा
लेकिन स्याही तो तू ही लेके जाएगा

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