।। कमाल ।।
।। कमाल ।।
क्या कमाल का लिखा है तुमने
कि हम पढ़ते रहे, पढ़ते रहे और शाम हो गई
नशा इस कदर था लिखावट में तेरी
कि पैमाने रखे रहे फिर भी आंखें मेरी बदनाम हो गईं
राज़-दर-राज़ खुलते रहे परत-दर-परत
दिल ऐसा लगा के सुबह से शाम हो गई
कोई मेरा भी इंतेज़ार करता रहा
कहीं दूर राह फिर बदनाम हो गई
वो सिर्फ़ राह को कोसते बैठा रहा
मेरी खातिर उसकी मोहब्बत कुछ यूँ जवान हो गई
तेरी लिखावट का जादू जो अभी बयाँ हुआ है
सारी कायनात इस तरह तुझपे मेहरबान हो गई
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