।। दिए में सूरज ।।
।। दिए में सूरज ।।
दिए में सूरज को समेटे हुए
मैं चला राह पर मंज़िल लपेटे हुए
कहीं से दूर तलक बस सवेरा ही नज़र आये मुझे
मैं चला सारा जहाँ बाहों में समेटे हुए
राह की मुश्किलें हार गईं मुझसे
मैं चला हार को गले से लपेटे हुए
मंज़िलें क्या रोक पाती मुझे अपने तक़ पंहुचने से
मैं चला राह पर मंज़िल लपेटे हुए
यूँ नज़र आया वो सुबह का सूरज
मैं चला चाँद को आंखों में समेटे हुए
राहें मुझे भूल जाएंगी, कोई बात नहीं
मैं चला यादें दिल में समेटे हुए
दिए में सूरज को समेटे हुए
मैं चला राह पर मंज़िल लपेटे हुए
दिए में सूरज को समेटे हुए
मैं चला राह पर मंज़िल लपेटे हुए
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