।। आह ।।
।। आह ।।
कहीं कुछ पिघल जाए
वो तख़्त-ओ-ताज हिल जाए
तो मत कहना
कि गरीब के दिल से आह निकली थी
तेरी सियासत तभी तक़ है बाक़ी
के तुझे कोई दुआ देता रहे
के कहीं तुझे याद करता रहे
कुछ तेरे प्यारे से दिल के लिए
मगर तू आया जब से कुर्सी पर
तेरा अहम तुझे निगलने लगा
तू करने लगा ख़ुदा बनने की कोशिश
और इंसान ही न बन पाया
तो जो कुर्सी हाथ से निकल जाए
और टोपी नीचे गिर जाए
तो मत कहना
कि गरीब के दिल से आह निकली थी
बड़े ही शौक़ से तुझे
बनाया था लोगों ने
सजाई थी थाल तेरे स्वागत में
गाये थे प्यार के नग़मे तेरे लिए
अब वही लोग जूते की माला पहनाएं
तुझे नफ़रत के नग़मे सुनाएं
तो मत कहना
कि गरीब के दिल से आह निकली थी
कभी यही लोग तेरे कायल थे
तेरी तस्वीर दिलों में सजाते थे
लगाते थे जयकारे तेरे नाम के
सजाते थे तेरी राहों को फूलों से
अब वही लोग तेरे पुतले जलाएं
तुझे रावण कह के बुलायें
तो मत कहना
कि गरीब के दिल से आह निकली थी
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