।। कुर्सियों की गोंद ।।
।। कुर्सियों की गोंद ।।
कुर्सियों की गोंद से विचार अभी उभरे हैं
ये विचार वही हैं जिन्होंने कुर्सियों में गोंद उगाई है
ये गोंद वही है जिसने चिपकाए रखा है
चिपकाए रखा है नेताजी को
अपने प्यारे नेताजी को कुर्सी की गद्दी से
ये खटमल कहाँ से आया कुर्सी में
ढूंढना है उपाय इस खटमल को भगाने का
और इसीलिए
कुर्सियों की गोंद से विचार अभी उभरे हैं
ये विचार बदलेंगे जनता का जीवन
ये विचार लाएंगे क्रान्ति
ये विचार भगाएंगे खटमल
और करेंगे मदद प्यारे नेताजी की
बैठाएंगे नेताजी को कुर्सी पर सदा के लिए
और इसीलिए
कुर्सियों की गोंद से विचार अभी उभरे हैं
ये खटमल बड़ा बेरहम है
रह-रह कर काटता है नेताजी को
ठेर सारे नाम हो सकते हैं इसके
ये उसी जनता के बीच रहता है
जिसने दिलाई थी नेताजी को कुर्सी
बल्कि इसने भी नेताजी को ही वोट दिया था
पर देखिये अब
कितना बेशर्म है
रह-रह कर काटता है
बताता है मैं पीड़ित हूँ
बताता है मैं शोषित हूँ
अरे नेताजी का दर्द भी तो समझो
कैसे छोड़ें कुर्सी
इतनी मुश्किल से गोंद उगाई है
तभी नेताजी को विचार आया
कि एक ही है इलाज इस खटमल का
कि कर दिया जाय इसका कत्ल
या फिर घोंटा जाए इसकी आवाज़ का गला
बस यही बस यही
कुर्सियों की गोंद से विचार यही उभरे हैं
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