।। क्या कहना ।।
।। क्या कहना ।।
ज़िंदा लाशों के देश मे क्या रहना
मुर्दा हुए जाते हैं जस्बात भी क्या कहना
क्यों रहना वहाँ जहाँ कुछ नया नहीं होता
बस जम जाते हैं ख़यालात भी क्या कहना
ये दस्तुरों की बस्ती है इंसानों का क्या काम
दस्तुरों के खूंटों से बंधे हैं इंसान क्या कहना
हर तरफ़ बस दस्तूर हैं हावी यहाँ तो
हिजाब और घूंघट ने छिपा रखा है इंसान क्या कहना
दस्तूर ही बताते हैं यहाँ कि बस्ती किसकी है
जात-पात में यहाँ बटा है इंसान क्या कहना
और वक़्त ही गुज़ारना है तो कहीं और चलते हैं
के वहम पाले बैठा है यहाँ इंसान क्या कहना
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