।। कहाँ क्यों कैसे ।।
।। कहाँ क्यों कैसे ।।
कहाँ क्यों कैसे कुछ
बदलता है
यहाँ तो सब कुछ
वैसे का वैसा
ही रहता है
कहाँ बदलती है राजनीति
सब वही तो होता है
सब वही तो होता है
दशकों से वही भीड़ है
वही भीड़ है जो देती है
जात के नाम पर वोट
वही भीड़ है जो देती है
चंद रुपयों के बदले वोट
कहाँ क्यों कैसे कुछ
बदलता है
यहाँ तो सब कुछ
वैसे का वैसा
ही रहता है
जिन्हें लगता है कि कुछ बदला है
तो हाँ हो सकता कुछ बदला हो
क्योंकि यहाँ बदलते हैं नेता
अपनी पार्टी
चुनाव जीतने के बाद
और हाँ टोपी भी बदलते हैं
कभी लाल हो जाती है
तो कभी पीली
लेकिन नहीं बदलता है
इनका चरित्र
उसमें ये पक्के हैं
तय है कि आपको ठगेंगे
उसमे ये पक्के हैं
जहाँ तक हो सकेगा
सरकारी माल उड़ाएँगे
उसमे ये पक्के हैं
पहुंचाएंगे फ़ायदा
अपने कॉरपोरेट मित्रों को
उसमे ये पक्के हैं
अपना कमीशन ज़रूर खाएंगे
उसमे ये पक्के हैं
कहाँ क्यों कैसे कुछ
बदलता है
यहाँ तो सब कुछ
वैसे का वैसा
ही रहता है
कहाँ रुकती है
किसान की आत्महत्या
कहाँ रुकता है
बेरोज़गार की आँखों से बहता पानी
कहाँ बदलते हैं
चुनाव में किये गए वादे
दशकों से वही वादे
कहाँ बदलते हैं
वही वादे
कि देंगे रोज़गार
वही वादे
कि मिटायेंगे गरीबी
पर ताज्जुब है
कि इतने सालों धोखा खाने के बाद भी
नहीं बदलता है
जनता का विश्वास
कहाँ क्यों कैसे कुछ
बदलता है
यहाँ तो सब कुछ
वैसे का वैसा
ही रहता है
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