।। वो क़त्ल हो गए ।।
।। वो क़त्ल हो गए ।।
क़त्ल की रात थी
कुछ लोग क़त्ल हो गए
इंतेज़ार करते रहे मौत का अपने
और वो क़त्ल हो गए
लगता रहा उनको कि आएंगे,
आएंगे लोग मदद करने
कोई न आया मदद को
और वो क़त्ल हो गए
सर्द रातों में ये विरोध कैसा
कुछ कानून ही तो बनाये हैं उन्होंने
वो कहते रहे कि हम सरकार हैं,
हम सरकार हैं, परवाह है आपकी
वो परवाह करते रहे,
छोड़ उन्हें सर्द रास्तों पर
करते रहे वो इंतेज़ार
उन्हीं सर्द रास्तों पर
करते रहे इंतेज़ार
और वो क़त्ल हो गए
क़ातिल का यूँ मुस्कुराना, बेशर्मी के साथ
कुछ और नहीं गुरुर है
कुछ भी कहना और अड़े रहना
कुछ और नहीं गुरुर है
गुरुर पहुंचा पहाड़ की चोटी पर
और वो क़त्ल हो गए
बरसता रहा पानी
कभी आसमान से तो कभी पिचकारी से
ख़ूब खेली होली सरेआम
ऐसे कि लाल होता रहा पानी
ख़ूब खेली होली सरेआम
और वो क़त्ल हो गए
भिगोया उन्हें ऐसे सर्द रातों में
के कोई न मिला समाधान
कोई न मिला समाधान
और वो क़त्ल हो गए
कोई न मिला समाधान
और वो क़त्ल हो गए
#authornitin #poem #poetry #hindipoetry
Comments
Post a Comment