।। साहब फ़क़ीर थे ।।

 ।। साहब फ़क़ीर थे ।।



वो देश को बेचते चले गए।

क्या करें! साहब फ़क़ीर थे।

अपना ज़मीर बेचते चले गए।


बहुत कुछ मिला उन्हें बेचने के काबिल।

क्या करें! साहब फ़क़ीर थे।

जो मिला वो बेचते चले गए।


एक ज़मीर की औक़ात ही क्या।

क्या करें! साहब फ़क़ीर थे।

बदस्तूर वो देश ही बेचते चले गए।


किसान हो या मज़दूर उन्हें बस बेचने से मतलब।

क्या करें! साहब फ़क़ीर थे।

उनके पसीने से निकला नमक भी वो बेचते चले गए।


किसी ने संजोए थे ख्वाब कि लाएंगे वो खुशहाली।

क्या करें! साहब फ़क़ीर थे।

खुशहाली को फ़क़ीरी के नाम पर वो बेचते चले गए।


रंग लाईं तेल की बढ़ती कीमतें।

क्या करें! साहब फ़क़ीर थे।

टैक्स बढ़ा कर वो तेल बेचते चले गए।


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