।। लहजा दर लहजा कुछ कहते थे तुम ।।
।। लहजा दर लहजा कुछ कहते थे तुम ।।
लहजा दर लहजा कुछ कहते थे तुम
हिम्मत तुम्हारी दुनिया ने देखी है
न झुकते थे न रुकते थे तुम
लहजा दर लहजा कुछ कहते थे तुम
ऋषि कोई यूँही नहीं बन जाता
जो भी हो हक़ीक़त वही कहते थे तुम
बंदिशें कुछ लोगों को बांधा नहीं करती
कुछ यूँ ही ज़माने से बात करते थे तुम
कुछ मुल्क यूँ ही नहीं महान बनते
कुछ लोग चाहिए होते हैं तुम्हारे जैसे
सलाम इस मुल्क को किया करते थे तुम
लहजा दर लहजा कुछ कहते थे तुम
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