।। भीड़ ।।
।। भीड़ ।।
ये आज की बात नहीं
सदियों पुरानी बात है
भीड़ आज भी वैसी ही है
भीड़ तब भी वैसी ही थी
सदियों पुरानी बात है
पर लगता है जैसे अभी की कोई घटना हो
भीड़ आज भी वैसी ही है
भीड़ तब भी वैसी ही थी
खड़े थे लोग पत्थर उठाये
जैसे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे उसको
भीड़ आज भी वैसी ही है
भीड़ तब भी वैसी ही थी
नफरत का ज़माना था
नफ़रतें थी आंखों में
टिकी थीं सबकी ही निगाहें
उस एक अबला नारी पर
मार ही डालना चाहते थे
लिए पत्थर अपने-2 हाथों में
वो बचती बचाती भाग आई थी थोड़ी दूर
आस लिए कि कोई शायद बचा ले
देखती थी उम्मीद बांधे
पर दया कैसे किसी को आती
भीड़ आज भी वैसी ही है
भीड़ तब भी वैसी ही थी
कुछ ही देर में उसने
पाया खुद को भीड़ के बीच
खून पीने को व्याकुल
भीड़ आज भी वैसी ही है
भीड़ तब भी वैसी ही थी
तभी आया एक सन्त
बोला उस भीड़ से
कि ठीक है ये पापन है
ठीक है तुम समझते हो पापी इसको
पर क्या कोई है जिसने कोई पाप न किया हो
पत्थर वही मारे जिसने कभी कोई पाप न किया हो
तब छूट गए थे पत्थर लोगों के हाथों से
मगर भीड़ आज भी वैसी ही है
भीड़ तब भी वैसी ही थी
और भीड़ तो यहाँ हर उस घर में पाई जाती है
जो लाते हैं ब्याह के एक अबला नारी को
कभी दहेज के नाम पर
तो कभी संस्कृति के नाम पर होता है उसका शोषण
ये भीड़ घरेलू होती है
और भीड़ तो वो भी है
जो लेती है कानून को अपने हाथ में
और टूट पड़ती है एक निहत्ते इंसान पर
खो देती है अपना आपा
बिना सच को जाने
क्योंकि भीड़ आज भी वैसी ही है
भीड़ तब भी वैसी ही थी
भीड़ तो वो भी है जो जश्न मनाती है
एक अकेले इंसान को निहत्ता अपने बीच पाकर
भीड़ आज भी वैसी ही है
भीड़ तब भी वैसी ही थी
ये आज की बात नहीं
सदियों पुरानी बात है
भीड़ आज भी वैसी ही है
भीड़ तब भी वैसी ही थी
भीड़ एक सम्मोहन का नाम है
जो निभाना जानता है सिर्फ भीड़-तंत्र
भीड़ आज भी वैसी ही है
भीड़ तब भी वैसी ही थी
भीड़ एक सहारा है अपनी कायरता को छुपाने का
छुप के एक कुत्सित मानसिकता का हिस्सा हो जाने का
ये आज की बात नहीं
सदियों पुरानी बात है
भीड़ आज भी वैसी ही है
भीड़ तब भी वैसी ही थी
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