कभी न कभी

।। कभी न कभी ।।

कब तक संभाल कर रखोगे झूठ को
सच तो सामने आएगा ही कभी न कभी

चादर में सर कितना भी छुपा लो
उठाना तो पड़ेगा ही कभी न कभी

मुखौटे कितने भी बदलो
असली किरदार में आना ही पड़ेगा कभी न कभी

और ज़रूरत भी क्या है झूठ बोलने की
सच तो सामने आएगा ही कभी न कभी

और यूँ चुप हो जाना भी कोई बात नहीं
इज़हार तो करना ही पड़ता है कभी न कभी

संभलते रहे हो ज़िन्दगी भर कि मुखौटा गिर न जाये
पर चेहरा तो दिखलाना ही पड़ता है कभी न कभी

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