।। खास ।।

।। खास ।।



किसी को बड़ा कर खास क्या बनाया
वो हमें आज आम समझने लगे

और खास तो वो अब भी हैं हमारे लिए
पर वो हमें एक सवालात समझने लगे

गुरूर इतना बढ़ा उनका कि वो तानाशाह हो गए
चश्मा लाल ही गया उनका,
और खुद को वो जल्लाद समझने लगे

खैरात बांटते थे पहले कभी
इसका भी घमंड था उनको
पर आज तन्हा ऐसे पड़े कि जस्बात बांटने लगे

रुसवा तो हमनें कभी किया नहीं उनको
पर वो हमें रुसवाई के हालात बांटने लगे

वो इतने खास हो चुके हैं अब
के नज़र आते नही हम उनको अब
सामने से ऐसे गुज़रे कि हमे पहचानते हीं नहीं
वो तो हमीं हैं कि उन्हें मानने लगे

जस्बात हमारे लिए मर गए थे उनके अंदर
वो तो हमीं थे जो आईना लेकर बैठे थे
वो शान से हमें निहारने लगे

निहारने के ढंग में एक शरारत थी उनकी
निगाहों से ही हमें धिक्कारने लगे

नज़रों में उनके कोई औकात नहीं थी हमारी
उन्होंने देखा, मुस्कुराए और पुचकारने लगे

जो खास होते हैं वो ऐसे ही होते हैं
सब बिकता है उनकी नज़रों में
कल खरीददार लेकर आये हमारे घर
मुस्कुराते हुए हमारा घर ही बिकवाने लगे

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