।। दीप जलाया रौशनी का ।।
।। दीप जलाया रौशनी का ।।
कुछ खोया कुछ पाया
पर दीप जलाया रोशनी का।
अँधेरा कबसे पुकार रहा था
कहता था कि आओ
एक दीप तो जलाओ
देख बाती दिए की
मैं बुझ जाऊंगा अभी।
बस आओ एक दीप तो जलाओ।
मैं भटका हुआ था
खोया हुआ था
खोया हुआ था अंधेरे की कालिमा में।
राह दिखती नहीं थी,
जो दीप तक पहुंचाए।
अचानक तभी एक एहसास जागा
याद आया कि मैं साथ लाया था दीपक।
एक उम्मीद जागी, एक एहसास जागा
लगा कि अंधेरा अब मिट सकेगा
बस दिए की राह जल्द याद आये।
कोशिशें नाकाम हो रही थी
भूला था कहाँ रखा था दीपक।
थोड़ा घबराया कि न मिल सका जो दीपक
तो कैसे मिटेगा अंधेरे का सागर
हार के पुकारा उस खुदा को
पुकारा कि वो आये और अंधेरा मिटाए।
पर कोई न आया
सब आशाएं मिटी तब।
हार के बैठा, आंखे मूंदी
लगा जैसे मिट जाऊंगा अभी मैं।
तभी याद आया वो दीपक का कोना
चल पड़ा कि वो राह तो आये।
ढूढ़ते-2 पहुंचा उस जगह तक
जाना कि दीपक तो कबसे वहीं था
वो था मेरे भीतर, पर मैं ही उसको भुला
आखिर मिला उस अजनबी से
वो मैं ही था, जो भूला
वो मैं ही हूँ जो दीपक दुबारा जलाए।
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