।। इन नफ़रतों के बीच ।।
।। इन नफ़रतों के बीच ।।
क्या मिला है इन नफ़रतों से अब तक,
जो और किये जाते हो,
रोशनी दफ़्न हुई जाती है इन नफ़रतों के बीच।
कि डर-2 के जी रहा है हर शख़्स इस जगह,
दम तोड़ती है दोस्ती इन नफ़रतों के बीच।
जलाए थे कुछ दिए ऐतबार के,
सब बुझ रहे हैं आहिस्ता इन नफ़रतों के बीच।
वो बच्चा कल जो खिलखिला के हंसता था,
खो गई है उसकी हंसी इन नफ़रतों के बीच।
रोज़ आता था वो प्यार के पैग़ाम लिए हुए,
आज आया तो वो रो दिया इन नफ़रतों के बीच।
लाज़मी है कि ये नफ़रतें अभी और बढ़ेंगी,
कि किसी को याद है सियासत इन नफ़रतों के बीच।
हम यूँ न बिछड़ते, अभी-2 तो मिले थे,
याद आया तेरा फ़ैसला इन नफ़रतों के बीच।
ये नफ़रतें न होती तो हम साथ होते अभी तक,
ले डूबा हमें तेरा फ़ैसला इन नफ़रतों के बीच।
मिल चुका हूँ बहुत सारे खुदाओं से अब तक,
देख ली सब की खुदाई इन नफ़रतों के बीच।
इल्ज़ाम किसी पर भी हुआ करें नफ़रतें फैलाने के,
मिटी तो इंसानियत ही है इन नफ़रतों के बीच।
कोइ मुसलमां कोई ईसाई तो कोई हिन्दू हुए जाते हैं,
बिखरीं हैं तो सिर्फ गोलियां इन नफ़रतों के बीच।
दरो-दीवार सने है लाल रंग से,
होली भी उदास है इन नफ़रतों के बीच।
राख में तब्दील हुई जाती हैं मेरे घर की चादरें,
सिलवटें भी राख हो गईं इन नफ़रतों के बीच।
अब नहीं दिखते उसके गालों पर वो डिम्पल,
झुर्रियां ही झुर्रियां हैं इन नफ़रतों के बीच।
सवाल पूंछता है मेरा बेटा मुझसे अक्सर,
कि क्यों है ये दीवारें इन नफ़रतों के बीच।
एक ऐतबार था जो अब नहीं रहा,
सवाल ही सवाल हैं इन नफ़रतों के बीच।
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