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।। मौन ।।

  ।। मौन ।। मौन की है साज़िश  शोर ने धरना किया है राज़ जो खोले हैं मौन ने शोर से ढकना पड़ा है मौन ने उगाएं हैं बहुत पेड़ धीरे-धीरे कुल्हाड़ी के शोर से कटना पड़ा है और समय लगता है कुछ भी नया होने में संघर्षों में डटना पड़ा है वो आये शोर लेके बोला सब कुछ बदल देंगे इस शोर में मौन को भी झुकना पड़ा है साज़िश बस यही है मौन की कि आये मौन सबके जीवन में शोर से बस इसीलिए तो लड़ना पड़ा है पर  मौन की है साज़िश  शोर ने धरना किया है #मौन #कविता #poem #poetry #authornitin 

।। पागलपन ।।

  ।। पागलपन ।। वो पिघलना बाहों में तेरी आकर कोई सुरूर नही एक पागलपन है लिखते-लिखते एक उम्र का बीत जाना कोई सुरूर नहीं एक पागलपन है और तेरी ज़ुल्फो का खुलना मुझे देखकर और फिर बिखर जाना कोई सुरूर नहीं एक पागलपन है और ये जानते हुए भी कि जाएगी ये जान एक दिन सरहद पर हंसते-हंसते चले जाना कोई सुरूर नहीं एक पागलपन है कि उसे अपनी मिट्टी की महक़ इतनी सुहानी लगी और उस सोंधी सी महक़ के लिए मर जाना कोई सुरूर नहीं एक पागलपन है इस पागलपन को क्या कहूँ मैं, मिट्टी देश की उसे अपनी माँ सी लगी और इसी पागलपन के लिए मिट जाना कोई सुरूर नहीं एक पागलपन है बिखरे पड़े थे कुछ पन्ने तेरी राहों में ऐ सरज़मीं, के तेरा जन्नत में भी याद आना कोई सुरूर नहीं एक पागलपन है तेरा जन्नत में भी याद आना कोई सुरूर नहीं एक पागलपन है #पागलपन #कविता #authornitin #poem #poetry 

।। वक़्त लगता है ।।

  ।। वक़्त लगता है ।। अपनी गहराइयों से जुड़ने में वक़्त लगता है कि रुसवाइयों का डर बहुत होता है और इसीलिये कई बार अपनी ख्वाहिशों से जुड़ने में  वक़्त लगता है तुझे पुकार-पुकार कर कोई मर गया था वहाँ कि तुझे आने में अक्सर वक़्त लगता है यूँ ही बद्नाम कर गया वो मुझको अब उसको मेरे पास कौन लाएगा कि तब वो मेरा अपना था  लेकिन अब अपना बनाने में वक़्त लगता है उसे औरों पर ज़्यादा यकीं हो गया था अब मुझे मनाने में  वक़्त लगता है उसने माना था अपना दुश्मन मुझे पर मैंने हमेशा दुआ दी थी उसको आज वो अफ़सोस जताए तो भी क्या अब मुझे मनाने में  वक़्त लगता है यूँ ही जादू से उगा नहीं करती फसलें इश्क़ की लम्हा-लम्हा सींचने में  वक़्त लगता है और कोई कितना भी इंतेज़ार करे बीते पल वापस कहाँ मिलते हैं क्योंकि वापस जाने में भी वक़्त लगता है क्योंकि वापस जाने में भी  वक़्त लगता है #authornitin #poem #poetry #वक़्त_लगता_है 

।। तेरी आंखें ।।

  ।। तेरी आंखें ।। नज़ाकत हो तो दरख्वास्त डालूं के कायल हूँ मैं तेरी आँखों का इतना नशा शराब में भी नहीं के घायल हूँ मैं तेरी आँखों का पिया था जाम पिछले साल नशा क़ायम है अब तक़ ये तेरी आँखों का रह-रह कर पूछता फिरता हूँ दुनिया से के कौन सा ये जाम है इन तेरी आँखों का पिलाया मत करो इतना नहीं तो गुनाहगार हो जाऊंगा तेरी आँखों का पिला के दूर भाग जाते हो, आओ थोड़ा और पिलाओ के दरिया नशीला है ये तेरी आँखों का #तेरी_आंखें #कविता #authornitin #poem #poetry #poetrylovers 

।। हाथ अभी हैं खाली ।।

  ।। हाथ अभी हैं खाली ।।   मेरे हाथ अभी खाली हैं तुम ही कुछ भर देना तेरी तलाश में आया हूँ इधर संवार मेरा तू कल देना और इबादत में थोड़ा कच्चा हूँ मैं पर रहमत मुझपर अपनी कर देना प्यासे को तो तू ही पहचाने है बरसात कुछ अफसानों की यूँ ही मुझपर कर देना और संगीत उदास है तुम्हारे बिन आकर मुझमें कुछ सुर अपने भी भर देना क्यों इतने दूर रहते हो मुझसे खुदा ही तो हो करीब भी आ जाना कभी, नैनों को मेरे यूँ तर देना #authornitin #poem #poetry #कविता 

।। तोते ।।

  ।। तोते ।। तोते बड़े पसंद हैं उनको क्या करें नेता हैं वो तोते बड़े पसंद हैं उनको क्योंकि तोते वही बोलते हैं जो रटाया जाए। रटाया जाए और फिर आने वाले मेहमानों के बीच बोला जाए कि मिट्ठू बोलो राम-राम। और वो बोलता है राम-राम। क्योंकि उसे और कुछ बोलना सिखाया ही नहीं। इसीलिए तोते बड़े पसंद हैं उनको क्योंकि सिर्फ वही बोलते हैं जो रटाया जाए। सिर्फ उतना ही बोलते हैं जितना सिखाया जाए। तोते बड़े पसंद हैं उनको क्योंकि नहीं करते कभी कोई सवाल। और फिर एक दिन आया तोते ने उड़ना चाहा। गुस्सा आया मालिक को, कि जिसे मैंने बोलना तक़ नहीं सिखाया, वो उड़ेगा? कैसे उड़ेगा,  इतनी हिम्मत, इतना दुस्साहस, उन्होंने काट दिए उसके पंख। क्योंकि जो जितना झुकता है उसे उतना ही और झुकाया जाता है फिर वो तोता हो या इंसान। याद रखना कि अगर जीना है इज़्ज़त से, तो पूछना ही होता है सवाल। तोते की तरह मत जीना क्योंकि तोता तो पिंजरे में ही जी पाता है। सिर्फ़ उतना मत बोलना जितना सिखाया जाए। ज़रूरी है कि सवाल उठाए जाएं, ज़रूरी है कि वो भी बोला जाए जिसको सुनना मालिकों को पसंद नहीं। तोते बड़े पसंद हैं उनको क्या करें नेता हैं वो तोते बड़े पसंद...

।। आह ।।

  ।। आह ।। कहीं कुछ पिघल जाए वो तख़्त-ओ-ताज हिल जाए तो मत कहना  कि गरीब के दिल से आह निकली थी तेरी सियासत तभी तक़ है बाक़ी के तुझे कोई दुआ देता रहे के कहीं तुझे याद करता रहे कुछ तेरे प्यारे से दिल के लिए मगर तू आया जब से कुर्सी पर तेरा अहम तुझे निगलने लगा तू करने लगा ख़ुदा बनने की कोशिश और इंसान ही न बन पाया तो जो कुर्सी हाथ से निकल जाए और टोपी नीचे गिर जाए तो मत कहना  कि गरीब के दिल से आह निकली थी बड़े ही शौक़ से तुझे बनाया था लोगों ने सजाई थी थाल तेरे स्वागत में गाये थे प्यार के नग़मे तेरे लिए अब वही लोग जूते की माला पहनाएं तुझे नफ़रत के नग़मे सुनाएं तो मत कहना  कि गरीब के दिल से आह निकली थी कभी यही लोग तेरे कायल थे तेरी तस्वीर दिलों में सजाते थे लगाते थे जयकारे तेरे नाम के सजाते थे तेरी राहों को फूलों से अब वही लोग तेरे पुतले जलाएं तुझे रावण कह के बुलायें तो मत कहना  कि गरीब के दिल से आह निकली थी #आह #कविता #poem #poetry