।। अपना हक़ ।।
।। अपना हक़ ।।
तू बैठा है फुरसत में
पर
ये लाज़मीं नहीं
के तू बैठे-बैठे
जादू की छड़ी हिलाता रहे
ये लाज़मीं नहीं
के तू बैठे-बैठे
मेरी क़िस्मत से
यूँ ही खेलता रहे
ये लाज़मीं नही
के तू बर्बाद करता रहे मेरा भविष्य
और ये भी लाज़मीं नहीं
कि मैं चुपचाप बैठा देखता रहूँ
क्योंकि
मैं वो हूँ
जिसने तुझे तख़्त पे बैठाया है
याद रख
मैं वो हूँ
जिसने तुझे तख़्त पे बैठाया है
याद रख
मैं युवा हूँ
याद रख
मैं वो हूँ
जो जब समझ जाए के तख्तनशीं झूठा है
जो जब समझ जाए कि अब और नहीं सहना
जो जब समझ जाए कि अब तख़्त को हिलाना है
तो वो बदल देता है कुर्सियां
तो वो गिरा देता है तख्तनशीं को
वो बदल देता है
देश की किस्मत
और छीन लेता है
अपना हक़
और छीन लेता है
अपना हक़
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