।। कलम मत रख ।।
।। कलम मत रख ।।
तू धारदार कलम
मत रख
तू अपनी मुँह में ज़बान
मत रख
मत रख ज़बान
के जो रखी तूने
तो काट दी जाएगी
के रखी जो तूने
तो उखाड़ दी जाएगी
अरे ये तख़्त-ओ-ताज़ की लड़ाई है
जो आयी ज़बान बीच में
तो कुचल दी जाएगी
तुझे तो बस इजाज़त है
के तू ताली बजाए
तुझे तो बस इजाज़त है
के वो जो बोले तू भी वही बोल
इसलिए
मत रख ज़बान
मत रख कलम
बस बैठ और डुगडुगी बजा
और नांच उस बंदर की तरह
जो मदारी के इशारों पर नाचता है
जो कभी मदारी के इशारों पर
इधर कूदता है तो कभी उधर
बन जा तू बंदर
बेच दे कलम अपनी
बह जा हवा के साथ
हवाएं यही कहती थीं
पर वो तो भगत था
उसे तो शौक़ था
फांसी के फंदे का
उसने बहनें दीं
अपने कलम की स्याही
उसने जोड़ दिया लीगों को
अपने रक्त से
वो सुभाष था
बोला दे दो मुझे अपना रक्त
ये रक्त मेरा ही है
तुम्हारा नही
वो बोला मुझे दिलानी
है सबको आज़ादी
आओ रक्त के बीज बोते हैं
तभी तो उगेगी
फसल आज़ादी की
वो रुका नहीं
वो झुका नहीं
और आयी आज़ादी
इतिहास सिखाता है जस्बा
कि कलम न बिके
कि ज़बान न रुके
तभी तो बदलेगी तस्वीर
तभी तो आएगा उजाला
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