।। पहचान ।।
।। पहचान ।।
पता नहीं मेरी ये
पहचान क्या है…?
और क्यों है ये नशा,
ये गुमान क्या है…?
क्यों फ़ितरत है ये
कि गुमान हो जाये,
पता नहीं क्यों है ये नशा
और ये पैग़ाम क्या है…?
कभी हम भी बैठा करते थे
इस पीपल की छाँव तले,
पर आज है ये जो तन्हाई
और ये इंतेज़ार क्या है…?
जो नशा कभी शराब में
मौजूद हुआ करता था,
कैसा है ये नशा गुमान का
और ये इंतेज़ाम क्या है…?
पता नहीं मेरी ये
पहचान क्या है…?
और क्यों है ये नशा,
ये गुमान क्या है…?
शख़्स वो भी
कोई और नहीं था।
मैं ही था जिसे
तुमने अपने करीब पाया था।
पर आज न जाने क्यों
एक बर्फ़ सी है
सर्द है कुछ मौसम
कुछ वीरान दीवारें है।
तन्हा मेरे गम में
ये गुमान भी तन्हा है
पर फिर भी,
है, ये जो साथ मेरे
ये गुमान क्या है…?
पर फिर भी,
है, ये जो साथ मेरे
ये गुमान क्या है…?
ये नशा है
जो उतरता नहीं।
रहता है दफ़्न सीने में
और मिटता नहीं।
यही है वजह तन्हाई की।
सब पता है मुझको
कि ये नशा है,
और ये नशा क्या है।
पर फिर भी,
है, ये जो साथ मेरे
ये गुमान क्या है…?
पर फिर भी,
है, ये जो साथ मेरे
ये गुमान क्या है…?
पता नहीं मेरी ये
पहचान क्या है…?
और क्यों है ये नशा,
ये गुमान क्या है…?
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