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Showing posts from September, 2020

।। शोर की तलाश ।।

  ।। शोर की तलाश ।। तन्हाइयां दर-बदर नहीं भटकातीं भटकते हैं लोग शोर की तलाश में बीत जाती है ज़िन्दगी शोर के बीच पर फिर भी भटकते हैं लोग शोर की तलाश में रहते-रहते शोर तन्हा कर जाता है पर फिर भी भटकते हैं लोग शोर की तलाश में तन्हा भी हुए कभी तो क्या हुआ तलाश शोर की ही रहती है और यूँ ही भटकते हैं लोग शोर की तलाश में सोचते है शोर भुला देता है अंदर की तन्हाई को तलाशते तलाशते खुद को भटकते हैं लोग शोर की तलाश में ये शोर जीने नहीं देता ज़िन्दगी भर उनको पर फिर भी भटकते हैं लोग शोर की तलाश में ज़िन्दगी भर शोर बढ़ाया ज़िन्दगी में के भूल जाएंगे अपने गम इस शोर के बीच और यूँ ही  भटकते हैं लोग शोर की तलाश में मिलता कुछ भी नहीं भटकाव के सिवा पर फिर भी भटकते हैं लोग शोर की तलाश में ज़रूरत थी तन्हाई की ज़रूरत थी शान्ति की पर फिर भी भटकते हैं लोग शोर की तलाश में #शोर_की_तलाश #authornitin #poem #poetry

।। उम्मीदें ।।

  ।। उम्मीदें ।। उम्मीदें यूँ टूट जाती हैं कभी कि वक़्त रह-रह कर ठहर जाता है और लहरों का गुमां देख लो अभी समंदर रुकता है ठहर जाता है ये सारा जहां देख लिया हमने सुनता है पर मतलब हो तो ठहर जाता है रुक-रुक कर हवाएँ भी चलती हैं यहाँ और कभी-कभी तूफ़ान भी ठहर जाता है जो सोचता था कि वो लाएगा बदलाव जहाँ में वो देख के मंज़र ठहर जाता है रुख़्सत हुआ था मेरा बुरा वक़्त अभी-अभी पर वो भी मुझे तन्हा देख के ठहर जाता है तेरे जुदा होने ने ऐसा तन्हा किया हमें के मेरा साया भी मुझसे लिपट कर ठहर जाता है आवाज़ आई मेरे दिल के तहख़ाने से के तू आये न आये तेरा ग़म तो यहीं ठहर जाता है यूँ तो मैं जुदा हुआ नहीं कभी तुमसे ये तेरा अक्स ही है जो ठहर जाता है याद भी तेरी इतनी संगदिल निकली  कि अल्फ़ाज़ तेरी याद में ठहर जाता है #authornitin #उम्मीदें #poem #poetry 

।। मनीषा ।।

  ।। मनीषा ।। देश ये है, देश वो है, बहुत करते हो बात देश की। वो मनीषा नहीँ मरी, मरा है देश का एक कोना, मरा है देश का एक हिस्सा, वो मनीषा नहीं मरी, कब्ज़ा लिया है घर बैठे दुश्मन ने ज़मीन का एक कोना। अरे देश किसी ज़मीन के टुकड़े का नाम नहीं, देश बनता है वहाँ के लोगों से, लोग मरते रहे तो देश को कैसे बचाओगे। देश ये है, देश वो है, बहुत करते हो बात देश की। और कितनी निर्भया चाहिए और चाहिए कितने सुशांत रोज़ देश का एक हिस्सा, यूँ ही, बस यूँ ही चला जाता है कब्ज़ा लेता घर में बैठा दुश्मन बस ऐसे ही थोड़ी-थोड़ी ज़मीन। देश बनता है लोगों से लोगों के जज़्बातों से लोग मरते रहे तो देश को कैसे बचाओगे। देश ये है, देश वो है, बहुत करते हो बात देश की। वो मनीषा नहीँ मरी, मरा है देश का एक कोना, मरा है देश का एक हिस्सा, #justiceformanisha #hathras #हाथरस #मनीषा  #authornitin 

।। जब भीड़ भीड़ से भिड़ती है ।।

  ।। जब भीड़ भीड़ से भिड़ती है ।। जब भीड़ भीड़ से भिड़ती है रक्तपात हो जाता है सत्ता के लालच में देखो ये खेल भी खेला जाता है कहते हैं विश्वास करो सत्ता में हैं पर मासूम हैं वो दंगे यूं ही हो जाते हैं उनका कोई हाथ नहीं बस धर्म धर्म से लड़ता है वो क्या कर सकते हैं असहाय हैं वो बस कहते हैं विश्वास करो सत्ता में हैं पर मासूम हैं वो कहते हैं विश्वास करो कुछ किया नहीं हमने देखो वो यूँ ही आ भिड़ जाते हैं और रक्तपात हो जाता है जब भीड़ भीड़ से भिड़ती है रक्तपात हो जाता है सत्ता के लालच में देखो ये खेल भी खेला जाता है #जब_भीड़_भीड़_से_भिड़ती_है #authornitin #poem #poetry 

A motivational story

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।। कलम मत रख ।।

  ।। कलम मत रख ।। तू धारदार कलम मत रख तू अपनी मुँह में ज़बान मत रख मत रख ज़बान के जो रखी तूने तो काट दी जाएगी के रखी जो तूने  तो उखाड़ दी जाएगी अरे ये तख़्त-ओ-ताज़ की लड़ाई है जो आयी ज़बान बीच में तो कुचल दी जाएगी तुझे तो बस इजाज़त है के तू ताली बजाए तुझे तो बस इजाज़त है के वो जो बोले तू भी वही बोल इसलिए  मत रख ज़बान मत रख कलम बस बैठ और डुगडुगी बजा और नांच उस बंदर की तरह जो मदारी के इशारों पर नाचता है जो कभी मदारी के इशारों पर इधर कूदता है तो कभी उधर बन जा तू बंदर बेच दे कलम अपनी बह जा हवा के साथ हवाएं यही कहती थीं पर वो तो भगत था उसे तो शौक़ था फांसी के फंदे का उसने बहनें दीं अपने कलम की स्याही उसने जोड़ दिया लीगों को अपने रक्त से वो सुभाष था बोला दे दो मुझे अपना रक्त ये रक्त मेरा ही है तुम्हारा नही वो बोला मुझे दिलानी है सबको आज़ादी आओ रक्त के बीज बोते हैं तभी तो उगेगी फसल आज़ादी की वो रुका नहीं वो झुका नहीं और आयी आज़ादी इतिहास सिखाता है जस्बा  कि कलम न बिके कि ज़बान न रुके तभी तो बदलेगी तस्वीर तभी तो आएगा उजाला #कलम_मत_रख #authornitin #poem #poetry

।। अपना हक़ ।।

  ।। अपना हक़ ।। तू बैठा है फुरसत में पर ये लाज़मीं नहीं के तू बैठे-बैठे जादू की छड़ी हिलाता रहे ये लाज़मीं नहीं के तू बैठे-बैठे मेरी क़िस्मत से  यूँ ही खेलता रहे ये लाज़मीं नही के तू बर्बाद करता रहे मेरा भविष्य और ये भी लाज़मीं नहीं कि मैं चुपचाप बैठा देखता रहूँ  क्योंकि मैं वो हूँ जिसने तुझे तख़्त पे बैठाया है याद रख मैं वो हूँ जिसने तुझे तख़्त पे बैठाया है याद रख  मैं युवा हूँ याद रख  मैं वो हूँ जो जब समझ जाए के तख्तनशीं झूठा है जो जब समझ जाए कि अब और नहीं सहना जो जब समझ जाए कि अब तख़्त को हिलाना है तो वो बदल देता है कुर्सियां तो वो गिरा देता है तख्तनशीं को वो बदल देता है देश की किस्मत और छीन लेता है अपना हक़ और छीन लेता है अपना हक़ #अपना_हक़ #authornitin #poem #poetry 

।। धर्म की पोटली ।।

 ।। धर्म की पोटली ।।  ये धर्म की पोटली में जो ख़ुराक़ रखी है नाम धर्म का है पर खुराक नकली है पिलाया गया ज़हर धर्म के नाम पर सदियों से बनाया गया गुलाम धर्म के नाम पर सदियों से ये बस है एक दुकान ये पहचान नक़ली है धर्म के ये ठेकेदार दिखते हैं हाथ जोड़े लगता है इनसे सभ्य कोई नहीं पर दिल में है खंज़र और ये मुस्कान नकली है पर दिल में है खंज़र और ये मुस्कान नक़ली है बनते हैं ये समाज सुधारक पर दुनिया को सबसे ज़्यादा है इन्ही से खतरा क्योंकि ये जो दिखते हैं वो पहचान नक़ली है ये धर्म के नाम पर सिर्फ भीड़ चाहते हैं ये भीड़ वाला धर्म और ये ईमान नक़ली है #authornitin #poem #poetry #धर्म_की_पोटली

।। पहचान ।।

  ।। पहचान ।। पता नहीं मेरी ये  पहचान क्या है…? और क्यों है ये नशा, ये गुमान क्या है…? क्यों फ़ितरत है ये कि गुमान हो जाये, पता नहीं क्यों है ये नशा और ये पैग़ाम क्या है…? कभी हम भी बैठा करते थे इस पीपल की छाँव तले, पर आज है ये जो तन्हाई और ये इंतेज़ार क्या है…? जो नशा कभी शराब में मौजूद हुआ करता था, कैसा है ये नशा गुमान का और ये इंतेज़ाम क्या है…? पता नहीं मेरी ये  पहचान क्या है…? और क्यों है ये नशा, ये गुमान क्या है…? शख़्स वो भी  कोई और नहीं था। मैं ही था जिसे तुमने अपने करीब पाया था। पर आज न जाने क्यों एक बर्फ़ सी है सर्द है कुछ मौसम कुछ वीरान दीवारें है। तन्हा मेरे गम में ये गुमान भी तन्हा है पर फिर भी,  है, ये जो साथ मेरे ये गुमान क्या है…? पर फिर भी,  है, ये जो साथ मेरे ये गुमान क्या है…? ये नशा है जो उतरता नहीं। रहता है दफ़्न सीने में और मिटता नहीं। यही है वजह तन्हाई की। सब पता है मुझको कि ये नशा है, और ये नशा क्या है। पर फिर भी,  है, ये जो साथ मेरे ये गुमान क्या है…? पर फिर भी,  है, ये जो साथ मेरे ये गुमान क्या है…? पता नहीं मेरी ये  पहचान ...