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।। सवाल ।।

  ।। सवाल ।। रात में जला दो कुछ तो सवालात हैं दब जाएंगे  फिर न उभरेंगे खोल के रख देते राज़ सारे पर अब  दब जाएंगे  फिर न उभरेंगे जवाब का इंतज़ार जो करते लोग अब सहम जाएंगे फिर न उभरेंगे कहाँ से आएंगे सवाल अब बढ़ा दो इतने सवाल के बिखर जायें लोग जो बिखर गए तो  फिर न उभरेंगे और खोखले होते  सवालों को खोखला कर दो और जो हो गए खोखले तो  फिर न उभरेंगे खड़े कर दो कुछ लोग इन सवालों के विरोध में भी जो लोग विरोधी हुए तो ये सवाल फिर न उभरेंगे यूँ ही बयां हो जाते हैं कुछ सवाल  इन कविताओं में जो शांत हो गई कविताएं तो फिर न उभरेंगे रात में जला दो कुछ तो सवालात हैं दब जाएंगे  फिर न उभरेंगे #सवाल #authornitin #poem #poetry 

।। कुर्सियों की गोंद ।।

  ।। कुर्सियों की गोंद ।। कुर्सियों की गोंद से विचार अभी उभरे हैं ये विचार वही हैं जिन्होंने कुर्सियों में गोंद उगाई है ये गोंद वही है जिसने चिपकाए रखा है चिपकाए रखा है नेताजी को  अपने प्यारे नेताजी को कुर्सी की गद्दी से ये खटमल कहाँ से आया कुर्सी में ढूंढना है उपाय इस खटमल को भगाने का और इसीलिए कुर्सियों की गोंद से विचार अभी उभरे हैं ये विचार बदलेंगे जनता का जीवन ये विचार लाएंगे क्रान्ति ये विचार भगाएंगे खटमल और करेंगे मदद प्यारे नेताजी की बैठाएंगे नेताजी को कुर्सी पर सदा के लिए और इसीलिए कुर्सियों की गोंद से विचार अभी उभरे हैं ये खटमल बड़ा बेरहम है रह-रह कर काटता है नेताजी को ठेर सारे नाम हो सकते हैं इसके ये उसी जनता के बीच रहता है जिसने दिलाई थी नेताजी को कुर्सी बल्कि इसने भी नेताजी को ही वोट दिया था पर देखिये अब कितना बेशर्म है रह-रह कर काटता है बताता है मैं पीड़ित हूँ बताता है मैं शोषित हूँ अरे नेताजी का दर्द भी तो समझो कैसे छोड़ें कुर्सी  इतनी मुश्किल से गोंद उगाई है तभी नेताजी को विचार आया कि एक ही है इलाज इस खटमल का कि कर दिया जाय इसका कत्ल या फिर घोंटा जाए इसकी आवाज़...

।। शोर की तलाश ।।

  ।। शोर की तलाश ।। तन्हाइयां दर-बदर नहीं भटकातीं भटकते हैं लोग शोर की तलाश में बीत जाती है ज़िन्दगी शोर के बीच पर फिर भी भटकते हैं लोग शोर की तलाश में रहते-रहते शोर तन्हा कर जाता है पर फिर भी भटकते हैं लोग शोर की तलाश में तन्हा भी हुए कभी तो क्या हुआ तलाश शोर की ही रहती है और यूँ ही भटकते हैं लोग शोर की तलाश में सोचते है शोर भुला देता है अंदर की तन्हाई को तलाशते तलाशते खुद को भटकते हैं लोग शोर की तलाश में ये शोर जीने नहीं देता ज़िन्दगी भर उनको पर फिर भी भटकते हैं लोग शोर की तलाश में ज़िन्दगी भर शोर बढ़ाया ज़िन्दगी में के भूल जाएंगे अपने गम इस शोर के बीच और यूँ ही  भटकते हैं लोग शोर की तलाश में मिलता कुछ भी नहीं भटकाव के सिवा पर फिर भी भटकते हैं लोग शोर की तलाश में ज़रूरत थी तन्हाई की ज़रूरत थी शान्ति की पर फिर भी भटकते हैं लोग शोर की तलाश में #शोर_की_तलाश #authornitin #poem #poetry

।। उम्मीदें ।।

  ।। उम्मीदें ।। उम्मीदें यूँ टूट जाती हैं कभी कि वक़्त रह-रह कर ठहर जाता है और लहरों का गुमां देख लो अभी समंदर रुकता है ठहर जाता है ये सारा जहां देख लिया हमने सुनता है पर मतलब हो तो ठहर जाता है रुक-रुक कर हवाएँ भी चलती हैं यहाँ और कभी-कभी तूफ़ान भी ठहर जाता है जो सोचता था कि वो लाएगा बदलाव जहाँ में वो देख के मंज़र ठहर जाता है रुख़्सत हुआ था मेरा बुरा वक़्त अभी-अभी पर वो भी मुझे तन्हा देख के ठहर जाता है तेरे जुदा होने ने ऐसा तन्हा किया हमें के मेरा साया भी मुझसे लिपट कर ठहर जाता है आवाज़ आई मेरे दिल के तहख़ाने से के तू आये न आये तेरा ग़म तो यहीं ठहर जाता है यूँ तो मैं जुदा हुआ नहीं कभी तुमसे ये तेरा अक्स ही है जो ठहर जाता है याद भी तेरी इतनी संगदिल निकली  कि अल्फ़ाज़ तेरी याद में ठहर जाता है #authornitin #उम्मीदें #poem #poetry 

।। मनीषा ।।

  ।। मनीषा ।। देश ये है, देश वो है, बहुत करते हो बात देश की। वो मनीषा नहीँ मरी, मरा है देश का एक कोना, मरा है देश का एक हिस्सा, वो मनीषा नहीं मरी, कब्ज़ा लिया है घर बैठे दुश्मन ने ज़मीन का एक कोना। अरे देश किसी ज़मीन के टुकड़े का नाम नहीं, देश बनता है वहाँ के लोगों से, लोग मरते रहे तो देश को कैसे बचाओगे। देश ये है, देश वो है, बहुत करते हो बात देश की। और कितनी निर्भया चाहिए और चाहिए कितने सुशांत रोज़ देश का एक हिस्सा, यूँ ही, बस यूँ ही चला जाता है कब्ज़ा लेता घर में बैठा दुश्मन बस ऐसे ही थोड़ी-थोड़ी ज़मीन। देश बनता है लोगों से लोगों के जज़्बातों से लोग मरते रहे तो देश को कैसे बचाओगे। देश ये है, देश वो है, बहुत करते हो बात देश की। वो मनीषा नहीँ मरी, मरा है देश का एक कोना, मरा है देश का एक हिस्सा, #justiceformanisha #hathras #हाथरस #मनीषा  #authornitin 

।। जब भीड़ भीड़ से भिड़ती है ।।

  ।। जब भीड़ भीड़ से भिड़ती है ।। जब भीड़ भीड़ से भिड़ती है रक्तपात हो जाता है सत्ता के लालच में देखो ये खेल भी खेला जाता है कहते हैं विश्वास करो सत्ता में हैं पर मासूम हैं वो दंगे यूं ही हो जाते हैं उनका कोई हाथ नहीं बस धर्म धर्म से लड़ता है वो क्या कर सकते हैं असहाय हैं वो बस कहते हैं विश्वास करो सत्ता में हैं पर मासूम हैं वो कहते हैं विश्वास करो कुछ किया नहीं हमने देखो वो यूँ ही आ भिड़ जाते हैं और रक्तपात हो जाता है जब भीड़ भीड़ से भिड़ती है रक्तपात हो जाता है सत्ता के लालच में देखो ये खेल भी खेला जाता है #जब_भीड़_भीड़_से_भिड़ती_है #authornitin #poem #poetry 

A motivational story

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