।। मौत का उद्घोष ।।

 ।। मौत का उद्घोष ।।



वो आते हैं

कुछ बोलते हैं

चले जाते हैं।

और

जब तक़ बोलते हैं

भक्तों के कान में 

सारंगी बजती है।

ये भक्त

बड़े अजीब हैं

इन्हें गिद्ध की चोंच में

लटका मांस 

का टुकड़ा नज़र नहीं आता।

इन्हें गिद्ध का संगीत

सुनाई नहीं देता।

इनकी आंखों को तो 

नज़र आता है

बस अपने स्वामी का 

चमकता चेहरा।

चाहे उस चेहरे के पीछे

कितनी भी कालिख़ हो

चाहे कितने ही खून के धब्बे हों।

भक्त को तो सुनाई देती है 

सिर्फ सारंगी।

चाहे वो मौत का उद्घोष ही क्यों न हो।

इसी सारंगी को सुनाने

भक्तों को मनाने

वो आते हैं

बार-बार।

वो आते हैं

कुछ बोलते हैं

चले जाते हैं।

और

जब तक़ बोलते हैं

भक्तों के कान में 

सारंगी बजती है।


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