।। क्यों देख रहा है ।।
।। क्यों देख रहा है ।।
कुछ रोशनी कम-सी तो नहीं है
ये सांस भी बेदम-सी तो नहीं है
भर लो थोड़ी सी जो नमीं है आंखों में
कहीं प्याले में आंसुओं की कमी तो नहीं है
रोज़ देखता हूँ कि वो मुझे देख रहा है
सवाल है कि क्यों देख रहा है
उसीके उसूल हैं और उसी का डंडा
फिर हर बात में वो मुझे क्यों घूर रहा है
बनाया सब कुछ जब उसी ने ही है
चलाता सब कुछ जब वो खुद ही से है
तो क्यों मुझपर चलता रहा है उसका डंडा
क्यों सफ़र में मैं अकेला हूँ वो भी नहीं है
हिम्मत है तो आये वो साथ मेरे
चले कुछ दूर वो भी तो साथ मेरे
क्यों छोड़ रखा है उसने मुझको अकेला
साथ क्यों वो मेरे नहीं है
रात भर ये सवालात चलते हैं मेरे ज़हन में
क्यों नम हैं इस शहर में, हज़ारों आंखे
क्यों बिकता है सब कुछ चंद सिक्कों की ख़ातिर
क्यों वो सिर्फ देखता है, करता कुछ भी नहीं है
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