।। बहुत ।।
।। बहुत ।।
ज़िन्दगी की गहमा-गहमी
में राज़ बहुत हैं
जीतने चले थे हम भी दुनिया
पर यहां उस्ताद बहुत हैं
कहने को तो समंदर फ़तह
करने को निकले थे हम
पर लहरों पे क़ाबिज़
यहाँ पर बाज़ बहुत हैं
और वो सुनते ही नहीं हमारी
सोचते हैं उड़ान भर दी है उन्होंने
जानते नहीं कि इस दुनिया में बैठे
अभी हैवान बहुत हैं
रोज़ वो निकलता था
टीका माथे पर लगाये
निकलता था कुछ अरमान
दिल में जगाए
क्या पता था उसको कि राह में उसके
अभी तूफ़ान बहुत हैं
ख़ैरियत पूछने गया था अपने प्यारे दोस्त की
देखा तो दुश्मन भी वहीं बैठे मिले उसको
क्या पता था उसको कि
उसकी आस्तीनों में साँप बहुत हैं
रहमदिल समझता था उनको
मगर पहली गोली उन्होंने ही चलाई
सोचता था जियेगा मस्त हो कर
पर साथियों में गद्दार बहुत हैं
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