।। एक रात ।।
।। एक रात ।।
एक रात, रात से
कुछ बात की मैंने।
यूँ ही तन्हा बैठे-२
रात से कुछ बात की मैंने।
वो बोली कुछ बोलूँ,
क्या कुछ राज़ खोलूँ।
बहुत राज़ दफ़्न है
मेरे सीने में नितिन।
बोलो तो कुछ राज़
तुमपे बस यूं ही खोलूँ नितिन।
मैं बोला, होंगे तुम्हे मालूम
बहुत राज़ तो क्या है
मुझे तो काम बस उस ख़ुदा से है
अगर जानती हो कुछ उसके बारे में
तो बताओ,
वरना बेफ़िज़ूल है ये गुफ़्तगू,
ये गुफ़्तगू क्या है।
वो फिर बोली,
मुझसे ज़्यादा शायद ही
किसी ने जाना हो उसके
बारे में,
लेकिन सिर्फ गुफ़्तगू
से बात बनती नहीं अक़्सर।
मिलता उसी को है
जो डूब जाए इस अंधेरे में
जो हो जाये तन्हा एक रात की तरह।
तुझे अगर वाक़ई है आरज़ू उसकी,
तो चल समझ मेरी तन्हाई को नितिन।
खो जाने दे अपने नाम की परछाईं तक को
भूल जा के तू एक शक़्स है,
जिसका नाम है नितिन।
रात का अंधेरा ही
प्रकाश लाता है अक़्सर।
क्योंकि मिट जाती अपनी
परछाइयाँ तक अक़्सर।
ये तेरा नाम भी परछाईं है
भूल जा के तू एक शक़्स है
जिसका नाम है नितिन।
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