।। काफ़िर ।।

 ।। काफ़िर ।।




अंधो के शहर में

वो आईना बेचने निकला


वो काफ़िर था 

ख़ुदा को ढूंढने निकला


ज़माना कुछ भी बोले

उसने बेच दी अंधों को आंखें


अंधेरे के शहर में

वो रोशनी बेचने निकला


ज़रूरत थी रोशनी की मगर

ख़रीदार वहाँ कोई न मिला


गुफाओं के शहर में

वो हवा को बेचने निकला


मुश्किलें साथ रहती हैं, अक्सर

वो किसी भी राह से गुज़रे


काटों के शहर में

वो गुलदस्ते बेचने निकला


अंधो के शहर में

वो आईना बेचने निकला


वो काफ़िर था 

ख़ुदा को ढूंढने निकला


शहर वो कुछ सुना-२ सा था

नाम उसका पहले भी सुना था उसने


गुलामों के शहर में

वो आज़ादी बेचने निकला


थक हार के बैठा

समझा, के मुश्किल है आज़ादी बेच देना यूँ


आसाँ रहता है अक्सर 

गुलामों सा ही बन जाना


बेड़ियों के शहर में

वो आज़ादी बेचने निकला


समझे बैठे थे जेवर 

जिन बेड़ियों को लोग


उन बेड़ियों में

वो मोहब्बत बेचने निकला


अंधो के शहर में

वो आईना बेचने निकला


वो काफ़िर था 

ख़ुदा को ढूंढने निकला


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