नकाबों का पहनना

नकाबों का पहनना बदस्तूर ज़ारी है
वो कल भी वैसे थे वो आज भी वैसे ही हैं।

कल आए थे मेरे पास
बहती हवाओं का बहाना लेकर,
कहते थे कि क्या ज़माना है
हवाओं ने पत्तों का साथ देना छोड़ दिया।

उड़ा ले जाती हैं
पेड़ो की परवाह किये बगैर।
हमने भी बड़े ध्यान से सुना उनको,
लगता था कि सारे जहां की फिक्र है उनको।

कल यूँ टहलते हुए कहीं जा रहा था मैं
देखा तो साहब रिक्शे से उतर रहे थे।
दो पैसे के लिए झगड़ पड़े रिक्शे वाले से
दो हाथ भी जड़ दिए बेचारे को।

नक़ाब यूँ नज़र आया मुझे उनका
वो कल भी वैसे थे वो आज भी वैसे ही हैं।
नकाबों का पहनना बदस्तूर ज़ारी है
वो कल भी वैसे थे वो आज भी वैसे ही हैं।

सलामती मुझसे पूछते थे रोज़
बता देता था अपना हाल।
बड़ी शराफ़त से मैं भी उनको
मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाते थे।

देखता था रोज़ उनको
आवारा बच्चों के सर पर हाथ फेरते।
कभी देखता था उनको
देश के लिये बड़े परेशान नज़र आते।

कल ही देखा उनको
उनके ही घर में,
शराब पी कर अपने ही
बच्चे को मारते, गाली देते।

नक़ाब यूँ नज़र आया मुझे उनका
वो कल भी वैसे थे वो आज भी वैसे ही हैं।
नकाबों का पहनना बदस्तूर ज़ारी है
वो कल भी वैसे थे वो आज भी वैसे ही हैं।

बोल रहे थे कल
की लाएंगे तरक़्क़ी अपने देश मे।ं
कल ही देख था उनको
गांधी का चरखा चलाते।

सुना था उनको सुभाष की तारीफ़ करते
देखा था तिरंगे का अक्स उनकी आंखों मे।
लगा था कि मिल गया वो
जिसे हम ढूंढ रहे थे सालों से।

तभी एक दिन उनको देखा
लाखों के पहने सूट में गांधी के आदर्शों,
उनके विचारों का मज़ाक उड़ाते।
देखा उनको गोडसे को प्यार से निहारते।

नक़ाब यूँ नज़र आया मुझे उनका
वो कल भी वैसे थे वो आज भी वैसे ही हैं।
नकाबों का पहनना बदस्तूर ज़ारी है
वो कल भी वैसे थे वो आज भी वैसे ही हैं।

#authornitin 

Comments

Popular posts from this blog

Importance of communication

An excerpt

Views of Napoleon Hill about Mahatma Gandhi