।।कौन दिलाता आज़ादी।।
।।कौन दिलाता आज़ादी।।
मैंने अभी बोलना शुरू भी नही किया था
कि वो बोले रुक
मत बोल
मैने कहा
सुनिए तो सही
बोलने तो दीजिए।
वो बोले
नहीं तू मत बोल
कि तू हवा के विपरीत ही बोलेगा
बोलेगा और कई राज़ खोलेगा।
तू चुप ही रह
तेरी चुप्पी ही मुझे समझ आती है।
क्योंकि तू जब बोलता है
तो मैं खुद से नज़रें नहीं मिला पाता।
सोचने लगता हूँ कि तू क्यों बोलता है।
फिर भी मैंने बोलने की कोशिश की
वो बोले
चुप तू चुप रह
मैं नही बोलने दूंगा तुझे
तू चुप रह
बांधले अपने मुंह पर पट्टी
वो बोले
सिर्फ मुँह पर ही नही
आंखों पर भी बांध।
क्योंकि जब देखेगा तभी तो बोलेगा
ऐसे ही तो राज़ खोलेगा।
और तू बोल
मुझे कोई परेशानी नही थी
लेकिन तू जब बोलता है
नकारात्मक ही बोलता है।
अरे तुझे नज़र ही नही आते
मेरे अच्छे काम।
तू जब भी बोलता है
मेरी खामियां खोलता है।
तू नकारात्मक है
इसीलिए मैं तेरी बातें नहीं सुनना चाहता।
तुझे क्या पता
सत्ता कितनी मुश्किल से मिलती है।
तुझे क्या पता
सत्ता कितना सुख देती है।
और तू चाहता तू बोले
मेरे राज़ खोले।
तू बोल
नहीं रोकूंगा तुझे
तू बोल
लेकिन वो बोल
जो मैं कहूँ।
तू देखेगा चमत्कार
तू भी भोगेगा सत्ता का सुख
मेरे साथ।
अरे थोड़ा दिमाग से काम ले।
कुछ मेरे लिये बोल
और उसका दाम ले।
अरे क्यों बोलता है नकारात्मक
कुछ लिख सकारात्मक
मेरे लिए।
कुछ ढूंढ सकारात्मक
देख उन लोगों को।
देख उन्हें जो सकारात्मक सोचते हैं
देख जो सकारात्मक बोलते हैं।
वो तरक़्क़ी कर रहे हैं
और देख अपने आप को।
गरीब रह गया।
तू भी लिख कुछ अच्छा
कुछ अच्छा
मेरे लिए।
देख तुझे मैं क्या से क्या बना दुँ।
मैंने फिर बोलने का प्रयास किया
लेकिन उसने बोलने ही नही दिया।
क्योंकि उसके पास सत्ता थी।
और उसे पता था
की मैं नकारात्मक ही बोलूंगा।
मैंने भी हार मान के
एक कागज़ पकड़ाया उसके हाथ में।
वो फिर भी डरता था
कि पता नहीं क्या लिखा हो उस कागज़ में
कहीं वो कागज़ आईना न बन जाये।
कहीं खोल न दे उसके राज़
कहीं वो खुद से नज़रे न मिला पाए।
फिर भी मजबूरन
मेरे बोलने से बचने के लिए
उसने कागज़ ले लिया।
आंखों में उसके
धन्यवाद भी था मेरे लिए
कि मैं नहीं बोला
और कम से कम
सबके सामने उसका राज़ नही खोला।
कागज़ पकड़ा मैं चल दिया
डरते-डरते उसने कागज़ खोला।
सिर्फ एक सवाल था उसमें
कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु
भी न बोले होते अगर।
कि वो भी सत्ताधारियों के लिए
सकारात्मक होते अगर।
कि गांधी भी सकारात्मक होते
कि सुभाष भी सत्ताधरियों के लिए सकारात्मक होते।
तो कौन दिलाता आज़ादी?
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