।। तख़्त पर बैठा मुर्गा ।।
।। तख़्त पर बैठा मुर्गा ।।
तख़्त पर बैठा मुर्गा
अपने-आप को सूरज समझ बैठा है।
वो समझता है कि
सुबह उसके बांग देने से होती है।
और इसीलिए
अब वो दिन भर बांग देता है।
बोलता ही रहता है
कभी यहाँ तो कभी वहाँ।
ढूंढता रहता कि कहीं चुनाव हो रहा हो
और वो वहाँ जाए और बोले,
और मांगे अपने लिए वोट
लोगों को बताकर कि
सुबह उसके कारण ही होती है।
इसीलिए वो बोलता है,
बेहिसाब,
बताता है कि वो हारा
तो वो बांग नही देगा।
और रोक देगा सूरज को उगने से।
और रोक देगा सूरज को उगने से।
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