बेबाक़
बेबाक है तेरी आवाज़ पर यूँ न कर गुमां के दबा दी जाएगी। माथे की लकीरें तेरे चाहे जितनी भी ग़मज़दा हों वतन की खातिर कौन है जो देखेगा उन्हें माथे पर ही तेरे रौंद दी जाएंगी। ज़बान संभाल के बोल ज़रा के तख्तनशीं अभी-अभी आया है शोर मचाया तो तेरी आवाज अभी ही दबा दी जाएगी। तू चूक जाएगा सच न बोल पायेगा के बोला अगर सच तो ज़बान तेरी काट दी जाएगी। लहू-लुहान हो जाया करते हैं लोग तेरे शहर में क्योंकि ये राजधानी है तख़्त सजते है तेरे शहर में क्योंकि ये राजधानी है मत बोल तख़्त के ख़िलाफ़ क्योंकि ये राजधानी है और अब अगर बोल ही दिया तो मांग ले माफी क्योंकि ये राजधानी है। माना बेबाक है तेरी आवाज़ पर यूँ न कर गुमां के दबा दी जाएगी। शानदार सा एक मुखौटा ढूंढ ओढ़ले अपने चेहरे पर मगर बोल मत बोला, तो अगले ही पल कब्र तुझे बुलाएगी। रोज़ रात को उठ के जो टटोलता है तू अक्स अपना तू जो सोचता है कि न बोल के तू पाप करता है तो ज़रा देख उनके घरों में लगे संगेमरमर तुझपे हंसते हैं। कहते हैं कि देख हमारे मालिक को सब झूठ बोलने का नतीजा है आज़मा के त...