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Showing posts from January, 2020

बेबाक़

बेबाक है तेरी आवाज़ पर यूँ न कर गुमां के दबा दी जाएगी। माथे की लकीरें तेरे चाहे जितनी भी ग़मज़दा हों वतन की खातिर कौन है जो देखेगा उन्हें माथे पर ही तेरे रौंद दी जाएंगी। ज़बान संभाल के बोल ज़रा के तख्तनशीं अभी-अभी आया है शोर मचाया तो तेरी आवाज अभी ही दबा दी जाएगी। तू चूक जाएगा सच न बोल पायेगा के बोला अगर सच तो ज़बान तेरी काट दी जाएगी। लहू-लुहान हो जाया करते हैं लोग तेरे शहर में क्योंकि ये राजधानी है तख़्त सजते है तेरे शहर में क्योंकि ये राजधानी है मत बोल तख़्त के ख़िलाफ़ क्योंकि ये राजधानी है और अब अगर बोल ही दिया तो मांग ले माफी क्योंकि ये राजधानी है। माना बेबाक है तेरी आवाज़ पर यूँ न कर गुमां के दबा दी जाएगी। शानदार सा एक मुखौटा ढूंढ ओढ़ले अपने चेहरे पर मगर बोल मत बोला, तो अगले ही पल कब्र तुझे बुलाएगी। रोज़ रात को उठ के जो टटोलता है तू अक्स अपना तू जो सोचता है कि न बोल के तू पाप करता है तो ज़रा देख उनके घरों में लगे संगेमरमर तुझपे हंसते हैं। कहते हैं कि देख हमारे मालिक को सब झूठ बोलने का नतीजा है आज़मा के त...

।।ये विस्तार तेरा।।

।।ये विस्तार तेरा।। कौन सा विस्तार कैसा विस्तार मानव तू संकुचित रहा है और संकुचित रहेगा। कौन कहता है ईश्वर है तुझमें कौन कहता है तू है धार्मिक। तू सोता रहा है तू सोता रहेगा। अहंकार जागा तो तुझसे ही जागा। तू खोता रहा है तू खोता रहेगा। खोया है तूने ये मन का उजाला। खोया है तूने ये आनंद सारा तू खोता रहा है तू खोता रहेगा। ये मन के उजाले यूँ न मिल सकेंगे। के पाला है तूने लालच का खंजर। लालच जिया है लालच जियेगा। तू सोता रहा है तू सोता रहेगा। क्या याद है तुझको प्रेम का उजाला। तूने पिया है तो नफरत का प्याला। नफरत को जिता कर तूने प्रेम है मिटाया। भूला तू सब कुछ सिवाय नफ़रतों के। तू जलता रहा है तू जलता रहेगा। ज़रूरी नही कि तू खंजर ही घोंपे। ज़रूरी नहीं कि जलाए दूसरों को। तू जलता रहा है तू जलता रहेगा। ये विस्तार तेरा तभी ही सकेगा के लाये तू ज्योति के प्रेम तू उगाए। ये विस्तार तेरा तभी हो सकेगा के ध्यान से तू अपना अंतर्मन जलाए। ये विस्तार तेरा तभी हो सकेगा के थोड़ा तू आगे बढ़ ...

।।कौन दिलाता आज़ादी।।

।।कौन दिलाता आज़ादी।। मैंने अभी बोलना शुरू भी नही किया था कि वो बोले रुक मत बोल मैने कहा सुनिए तो सही बोलने तो दीजिए। वो बोले नहीं तू मत बोल कि तू हवा के विपरीत ही बोलेगा बोलेगा और कई राज़ खोलेगा। तू चुप ही रह तेरी चुप्पी ही मुझे समझ आती है। क्योंकि तू जब बोलता है तो मैं खुद से नज़रें नहीं मिला पाता। सोचने लगता हूँ कि तू क्यों बोलता है। फिर भी मैंने बोलने की कोशिश की वो बोले चुप तू चुप रह मैं नही बोलने दूंगा तुझे तू चुप रह बांधले अपने मुंह पर पट्टी वो बोले सिर्फ मुँह पर ही नही आंखों पर भी बांध। क्योंकि जब देखेगा तभी तो बोलेगा ऐसे ही तो राज़ खोलेगा। और तू बोल मुझे कोई परेशानी नही थी लेकिन तू जब बोलता है नकारात्मक ही बोलता है। अरे तुझे नज़र ही नही आते मेरे अच्छे काम। तू जब भी बोलता है मेरी खामियां खोलता है। तू नकारात्मक है इसीलिए मैं तेरी बातें नहीं सुनना चाहता। तुझे क्या पता सत्ता कितनी मुश्किल से मिलती है। तुझे क्या पता सत्ता कितना सुख देती है। और तू चाहता तू बोले मेरे राज़ खोले। तू बोल नहीं र...

नकाबों का पहनना

नकाबों का पहनना बदस्तूर ज़ारी है वो कल भी वैसे थे वो आज भी वैसे ही हैं। कल आए थे मेरे पास बहती हवाओं का बहाना लेकर, कहते थे कि क्या ज़माना है हवाओं ने पत्तों का साथ देना छोड़ दिया। उड़ा ले जाती हैं पेड़ो की परवाह किये बगैर। हमने भी बड़े ध्यान से सुना उनको, लगता था कि सारे जहां की फिक्र है उनको। कल यूँ टहलते हुए कहीं जा रहा था मैं देखा तो साहब रिक्शे से उतर रहे थे। दो पैसे के लिए झगड़ पड़े रिक्शे वाले से दो हाथ भी जड़ दिए बेचारे को। नक़ाब यूँ नज़र आया मुझे उनका वो कल भी वैसे थे वो आज भी वैसे ही हैं। नकाबों का पहनना बदस्तूर ज़ारी है वो कल भी वैसे थे वो आज भी वैसे ही हैं। सलामती मुझसे पूछते थे रोज़ बता देता था अपना हाल। बड़ी शराफ़त से मैं भी उनको मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाते थे। देखता था रोज़ उनको आवारा बच्चों के सर पर हाथ फेरते। कभी देखता था उनको देश के लिये बड़े परेशान नज़र आते। कल ही देखा उनको उनके ही घर में, शराब पी कर अपने ही बच्चे को मारते, गाली देते। नक़ाब यूँ नज़र आया मुझे उनका वो कल भी वैसे थे वो आज भी वैसे ही हैं। नकाबों का पहन...

ज़रा क्रोनोलॉजी समझिए

ज़रा क्रोनोलॉजी समझिए तुम बिक चुके हो मैं नही इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। पहले पसंद किया फिर तेज़ाब फेंका इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। बात सिर्फ अपने चहेतों को समझाई इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। बात करने ही नही गए विरोधियों से इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। बात तो नही की और डंडे चल गए इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। सवाल पूछा देशद्रोही कहा इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। जिसने आवाज़ उठाई उसका चरित्रहरण किया इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। एक बेटी के बलात्कार पर जय-घोष निकाला इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। किसी को घूंघट दिखा बुर्क़ा नहीं और किसी को बुर्क़ा दिखा घूंघट नहीं इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। औरत को सिर्फ वस्तु समझा इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। पहले बेटियों को पेट में मारा फिर बहु खरीदी इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। इलेक्शन के पहले मज़हबी बोल इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। शिक्षा को बाज़ार बनाया फिर फ़ीस बढ़ाई इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। इलेक्शन के पहले नेताजी ने नेताजी की बुराई की इलेक्शन के बाद हाथ मिलाया इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। सेवक बने फिर मलाई खाई इसकी क्रोनोलॉजी समझिए। न भूख दिखे न बेरोज...

वो खुद अपने पर्दे हटाने लगे हैं

वो खुद अपने पर्दे हटाने लगे हैं अंधेरे में छिप-छिप के आने लगे हैं। और जब भैंस पर अपना हक़ न जता सके तो छिप-छिप के लाठी दिखाने लगे है। सियासत पर हैं आज तो उन्ही का कब्ज़ा इसीलिए वो और बेरहमी फरमाने लगे हैं। वो तो पढ़े लिखे हैं कुछ लोग जो उनको उनकी असलियत समझाने लगे हैं। अनपढों में है उनकी पहचान सारी बदस्तूर अनपढ़ ही उनको भाने लगे हैं। डिग्री लाये थे पढ़े लिखों को फुसलाने के लिए पोल खुल ही गई क्योंकि अब रिजल्ट आने लगे हैं। कल रात की ही बात है घुसे हमारे घर में वो उनके हाथों में डंडे आने लगे हैं। पूछा कि इनकी क्या ज़रूरत है बिना जवाब वो डंडे चलाने लगे हैं। वो खुद अपने पर्दे हटाने लगे हैं अंधेरे में छिप-छिप के आने लगे हैं। और जब भैंस पर अपना हक़ न जता सके तो छिप-छिप के लाठी दिखाने लगे है। ऐसी ही है ये नफरत की फितरत उन्ही की पर इल्ज़ाम दूजों पर लगाने लगे हैं। कहते थे कि तरक्की लाएंगे तेरे देश में पर नफ़रतों का बाज़ार लाने लगे हैं। मज़हब की तो बात ही न पूछो दोस्तों वो मज़हब को भी सियासत का गुलाम बनाने लगे हैं। कालिख दूसरों पे मल के खुद को मासूम बताने लगे हैं। सियासत क...