।। क़त्ल ।।
।। क़त्ल ।।
इसे क़त्ल मत कहिये जनाब
के क़ातिल फ़रार है
डर कैसा क़त्ल करने में
जब अपनी ही सरकार है
और हक़ दे पाएंगे नही ये लोग
इनका ज़मीर अब और बीमार है
नफ़रतें रग-रग में पाले बैठा ये समाज
जाहिलों का बढ़ता हुआ एक बाज़ार है
रुको मत लेकिन लड़ते रहो
वो उतना ही डरपोक है जितना दलाल है
रग-रग में खून भरा है उनके
और आज खून में उबाल ही उबाल है
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