।। धुँआ ।।
।। धुआँ ।।
धुआँ सब जगह दिख रहा है
ये आग किसने लगाई है
देश की बात करने को
ये धुनी किसने रमाई है
ज़मीं के कर्ज़ बहुत हैं उनपर
ये फसल बस इसलिए ही उगाई है
वो अपना हक़ मांगने क्या आये
किरकिरी आँख में उनके आई है
ज़मीनो के झगड़े बहुत हैं
पर ज़मीं के भाग में सदा रुसवाई है
वो सरकार बना कर करतब दिखाए जाते हैं
उनकी फितरत में ही सर्कस समाई है
किसी के घर का चराग बुझा कर
मुआवज़े की याद उन्हें आयी है
गज़ब है न्याय देने की समझ उनकी
आग लगाने वाले से ही अब सुनवाई है
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