मंज़िल और रास्ता
मंजिल से दूर एक रास्ता दिखा और मैं चल पड़ा....
बिना ये जाने कि कहाँ पहुंचुंगा....
कभी कभी भटकने का भी मजा होता है....
बल्कि मजा तो भटकने में ही होता है....
क्या है ये दुनिया ....
बस एक घिसे हुए टेप की तरह चलते रहो..
वही करते रहो जो कल किया था और परसों फिर करोगे....
तो मैंने भटकने का फैसला किया....
रास्ते भी बड़े अजीब होते हैं ....
कहीं न कहीं तो पहुंचाते ही हैं....
जबकि मंजिलें तो ठहरी रहतीं हैं...
वहीं के वहीं...
पर हमने मंजिलों को ऊपर बैठाया....
रास्तों को भुला कर...
मगर भटकाना हो तो रास्ते ही काम आते हैं ......
मंजिलें नहीं.....
मैं भटकना चाहता हूँ ......
इसलिए मैं चल पड़ा ....
रास्तों पर रास्तों की तलाश में....
मंजिलों की नहीं...
क्यूंकि मंजिलें ठहरी हुई हैं...
रास्ते नहीं.....
रास्ते चुनते वक्त लोग सही गलत का फैसला करना चाहते हैं....
मैं नहीं करना चाहता...
क्योंकि भटकना तो तभी मुमकिन है जब रास्ता गलत हो....
फिर रास्ते सही हो या गलत चलने का मजा तो देते हैं...
मंजिलें तो ठहरी हुई हैं....
और मंजिलें तो गलत ही होती हैं....
किसी की मंजिल धन कमाना....
पर जब मंजिल मिलती है तो पता चलता है कि कितनी जड़ है....
कितनी ठहरी हुई है....
मैं ही पागल था जो इसके पीछे....
इस धन के पीछे पागल था....
जब पाया तो देखा ठहराव....
देखी जड़ता......
अब समझा की रास्ता बेहतर था....
मंजिल ने भटकाया..
फिर मंजिल धन की हो, नाम की या कुछ और सब भटकाव हैं....
मंजिल भविष्य है....
रास्ता वर्तमान है.....
मंजिल भ्रम है....
रास्ता सच.....
मंजिल माया है....
रास्ता मोक्ष.....
मंजिल इच्छा है.....
रास्ता खुशी...
इसीलिए मैंने रास्ते को चुना.....
मैंने वर्तमान को चुना....
सही या गलत मैंने चलने को चुना...
जो चलता है मदमस्त वही उस मस्ती को समझ सकता है....
बाकी मंजिलें तो फरेब हैं...
धोका है...
सिर्फ भटकाती हैं...
रास्ते ही चलने का मजा देते हैं....
जीवन एक रास्ता है....
जिसे वही समझ पाता है जो मंजिलों से परे हर पल उसे जीने की कोशिश करता है.....
जो हर पल इसे जीता है....
जो रास्ते में मिलने वाले पेड़ों का और धूप का बराबरी से मजा लेते हैं...
जो झरनों की कल कल का आनन्द लेता है...
जो रिमझिम बारिश में खुद को भिगोता है...
क्योंकि जीवन सिर्फ एक रास्ता है.....
जिसकी कोई मंजिल नहीं...
मंजिलों की तलाश में भटक जाते हैं लोग...
वर्ना जीवन एक ऐसा रास्ता है जो भटकाता नहीं .....
बल्कि आनंद से भर देता है ......
सिर्फ मंजिलों की तलाश छोड़नी होती है....
और सिर्फ रास्ते पर चलना होता है..
भटकना होता है....
सम्भलना होता है....
जीवन को सिर्फ बिना कुछ तलाशे जीना होता है....
पर यही है सबसे मुश्किल कार्य....
क्योंकि मंजिलें हमें आकर्षित करती हैं....
हमें भृम में डालती हैं कि हमारा जीवन इन मंजिलों के बिना कुछ नहीं....
मंजिलें सिर्फ हमें भटकाती हैं....
रास्ते ही हमें चलना सिखाते हैं....
आनंद से...
परिपूर्णता से.....
इसलिए मैं चल पड़ा ऐसे जैसे चलना ही मेरी मंजिल है....
और मैं चल पड़ा...
#authornitin
To connect with the author-
Author's Amazon page-
bit.ly/am_nitin_page
Author's smashwords page
bit.ly/sm_nitin_page
Twitter-
@nitinsri982
Facebook-
http://bit.ly/fb_author

Comments
Post a Comment