हिंदी एक समृद्ध भाषा

मैंने अपनी नौकरी की शुरुआत एक प्राइवेट कंपनी से की थी जो कि इंडस्ट्रियल उत्पाद बनाती थी। उस नौकरी में मुझे लुधियाना जाने का मौका मिला। हीरो ग्रुप की एक कंपनी में अपनी कंपनी का उत्पाद लगाना था। मेरे साथ एक और इंजीनियर भी था, शिवा। हम दोनों को साथ मे मिल कर करीब दो महीने के समय मे इस प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक समाप्त करना था। शिवा तमिलनाडु के थे और मुझसे सीनियर थे, हालांकि कुछ ही दिनों में मेरी और उनकी अच्छी दोस्ती हो गई। होती भी क्यों नही आखिर दो महीने हम लोगो को एक ही प्रोजेक्ट पर काम करना था।
दोस्ती होने का एक बड़ा कारण शिवा की अच्छी हिंदी भी थी।
शिवा को रजनीकांत बहुत पसंद थे और वो कई बार अपनी तरफ से ही छेड़कर ये कहते थे कि किसी देश मे सुपरस्टार तो एक ही होता है और रजनीकांत की कमाई सबसे ज्यादा है इस हिसाब से भारत के सुपरस्टार तो रजनीकांत ही है। मै उनकी बात एक्सेप्ट कर लेता था। एक बार मैंने कहा कि ये बात तो अपनी जगह है लेकिन मुझे ये बताइये कि आपकी हिंदी इतनी अच्छी कैसे है? तो शिवा ने मुझे बताया कि इसमें सबसे बड़ा योगदान हिंदी मूवीज का है। क्योंकि उसको हिंदी फिल्में देखने का शौक था। और उसने ये भी बताया कि कट्टर हिंदी विरिधियो के बावजूद तमिलनाडु जैसी जगह में भी हिंदी सिखाने के लिए कोचिंग संस्थान हैं और लोग हिंदी सीखते हैं ताकि वो हिंदुस्तान में कहीं भी नौकरी कर सकें।
मुझे ये जानकर अच्छा लगा कि जो काम सरकारें हिंदी के लिये नही कर पा रही हैं वो काम फिल्में कर रही हैं। फिल्मों ने हिंदी को बहुत पॉपुलर किया है। इस संदर्भ में मुझे बहुत सालों पहले लिया गया राज कपूर साहब का इंटरव्यू याद है जिसमे कुछ रूस के लोगों ने मशहूर गाना ‘मेरा जूता है जापानी’ गा कर सुनाया था। मुझे खुशी हुई थी उनके मुंह से ये गाना सुन कर। इसी तरह मुझे एक बार अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के एक दोस्त से बात करने का मौका मिला जो कि फर्राटेदार हिंदी बोलता था। उससे भी मैने यही सवाल किया की उसकी हिंदी इतनी अच्छी कैसे है और उसका जवाब भी यही था कि हिंदी फिल्मों में उसकी रुचि की वजह से और उसने कहा कि आपको अण्डमान में हिंदी बोलने वाले बहुत मिलेंगे।
मुझे ये सब जानने के बाद एक बात का पता चला कि हिंदी को चाहने वाले कभी-कभी हिंदी को जिस तरह की दीनहीन स्थिति में प्रस्तुत करते हिंदी कहीं से भी उतनी दीनहीन स्थिति में नही है। विकिपीडिया के अनुसार हिंदी दुनिया में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में तीसरे स्थान पर है।
आप लोग सोच रहें होंगे कि मैं आखिर कहना क्या चाहता हूं। वैसे तो ये जो भाषाओं की लड़ाई है इसे में बेमानी मानता हूँ, क्योंकि हर भाषा की अपनी कुछ खासियतें होती हैं। हिंदी की भी हैं और इंग्लिश की भी या किसी और भाषा की भी। लेकिन इतनी उत्कृष्ट भाषा होते हुए भी जब मुझे ये देखने को मिलता है कि अपने ही देश मे हिंदी को वो सम्मान और खास तौर पर तकनीकी ऐवं व्यावसायिक क्षेत्रों में क्यों नही मिल पा रहा। मैंने ये महसूस किया है कि तकनीकी क्षेत्रों में आने वाले उन छात्रों का काफी समय सिर्फ इस कारण से व्यर्थ होता है क्योंकि उनकी इंग्लिश अच्छी नही होती। कई जगह जहां पाठ्यक्रम का माध्यम हिंदी है वहाँ पर हिंदी बहुत ही कलिष्ट रूप मे इस्तेमाल हो रही है। जैसे कि एक बार मैं डिप्लोमा पाठ्यक्रम में इस्तेमाल की जाने वाली हिंदी पुस्तक देख रहा था। उस पुस्तक में क्लिष्ट शब्दों की भरमार थी जिन्हें समझना मुश्किल था। जैसे कि क्या ज़रूरत की आप workshop को कर्मशाला लिखें। छात्र के लिए दोनो शब्द नए होते है, तो क्यों न उसे सीधे workshop शब्द से ही परिचय कराया जाए ताकि वो कहीं भी जाये तो उसे नए शब्द का प्रयोग न करना पड़े। और अगर विदेश भी जाना हो तो सिर्फ इंग्लिश की ग्रामर सीखनी पड़े न कि सारे के सारे शब्द भी। इंग्लिश हर साल अपने भीतर हज़ारों शब्द दूसरी भाषाओं से समाहित करती है। बाजार, रोटी, जंगल और बहुत सारे हिंदी के शब्द आज इंग्लिश डिक्शनरी का भी हिस्सा हैं।  और यही कारण है इंग्लिश के समृद्धशाली होने का।
हिंदी को भी इस बात की ज़रुरत है कि क्लिष्ट शब्दों की जगह सरल शब्दों का इस्तेमाल किया जाए।
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