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Showing posts from October, 2021

।। ज़र्रा-ज़र्रा ।।

  ।। ज़र्रा-ज़र्रा ।। ज़र्रा-२ है पुकारे नाम तेरा ऐ ख़ुदा तू क़माल करता है बादल आसमां बारिश सब में तू छुपा है ऐ ख़ुदा तू क़माल करता है रोशनी अंधेरा हर जगह ऐ ख़ुदा तू क़माल करता है बेहद मगरूर हैं ये लोग सारे संगेमरमर में समेटा है तुझको ऐ ख़ुदा तू क़माल करता है और बेहद ज़रूरी नहीं कि तू मिल जाये मुझे या किसी और को सहूलियत से तू ये सारा धमाल करता है नाचता है कभी मोर बन कर ऐ ख़ुदा तू क़माल करता है कमज़ोर से मज़बूत को भी हराता है कभी-२ ऐ ख़ुदा तू क़माल करता है #authornitin #poem #poetry 

।। क़त्ल ।।

  ।। क़त्ल ।। इसे क़त्ल मत कहिये जनाब के क़ातिल फ़रार है डर कैसा क़त्ल करने में जब अपनी ही सरकार है और हक़ दे पाएंगे नही ये लोग इनका ज़मीर अब और बीमार है नफ़रतें रग-रग में पाले बैठा ये समाज जाहिलों का बढ़ता हुआ एक बाज़ार है रुको मत लेकिन लड़ते रहो वो उतना ही डरपोक है जितना दलाल है रग-रग में खून भरा है उनके और आज खून में उबाल ही उबाल है #authornitin #poem #poetry

।। धुँआ ।।

  ।। धुआँ ।। धुआँ सब जगह दिख रहा है ये आग किसने लगाई है देश की बात करने को  ये धुनी किसने रमाई है ज़मीं के कर्ज़ बहुत हैं उनपर ये फसल बस इसलिए ही उगाई है वो अपना हक़ मांगने क्या आये किरकिरी आँख में उनके आई है ज़मीनो के झगड़े बहुत हैं पर ज़मीं के भाग में सदा रुसवाई है वो सरकार बना कर करतब दिखाए जाते हैं उनकी फितरत में ही सर्कस समाई है किसी के घर का चराग बुझा कर मुआवज़े की याद उन्हें आयी है गज़ब है न्याय देने की समझ उनकी आग लगाने वाले से ही अब सुनवाई है