संवेदनायें
संवेदनायें
मंदिर के बाहर जूतों का झुंड पड़ा हुआ था। उसी झुंड के बीच एक फटा-पुराना जूता एक नए जैसे चमचमाते हुए जूते को निहार रहा था। सोच रहा था कि कुछ बात हो जाती तो समय अच्छा कट जाता। लेकिन ये जनाब तो अपने बगल में पड़ी सैंडल से बाते करने में मस्त थे और ऐसे हालात में एक फटे-पुराने जूते को कौन पूछे। जूता एक अमीर आदमी का था और सैंडल भी अच्छे घराने की थी। इसलिए बाते भी खूब हो रही थीं। उधर फटा-पुराना जूता समझ चुका था कि कोशिश करना बेकार है और वो शांत ये सारी घटनाएं देख रहा था। थोड़ा मुस्कुरा भी रहा था, ये सोच करके कि इन्हें नहीं पता कि एक दिन इनके साथ भी यही होना है। उसे वो दिन याद आ रहे थे जब वो भी एक अमीर के पैरों की शान हुआ करता था। लेकिन कुछ दिन इस्तेमाल करने के बाद उस अमीर ने उसे अपने यहां काम कर रहे एक मज़दूर को दे दिया।
उसके बाद से वो मज़दूर ही उसका साथी था। साथी इसलिए क्योंकि उस मज़दूर को उसकी कीमत पता थी। अमीर तो उसका मालिक था लेकिन ये गरीब मज़दूर उसको इज़्ज़त देता था। अमीर उसका इस्तेमाल करने के बाद उसे ऐसे फेंक देता था जैसे अब वो कभी उसे छुएगा भी नहीं। और ऐसा कई बार होता भी था कि हफ्तों बाद उसका नंबर आता था। जबसे वो मज़दूर के पास आया उसे इज़्ज़त का एहसास हुआ। उसे महसूस हुआ कि उसकी भी कोई कीमत है, कोई उसकी तरफ भी ध्यान देता है। और इसीलिए वो जूता भी मज़दूर को एक कांटा भी चुभने नहीं देता था। वो ये सब सोच ही रहा था कि उसने देखा कि उस चमचमाते हुए जूते का मालिक आया और जल्दी से अपने पैर में पहन के चलता बना। और ये फिर से अपने ख्यालों में खो गया। उसे याद आया वो दिन जब पहली बार इस मज़दूर ने उसे पहना। अपने घर पर पहुंचने के बाद कई दिनों तक उसने उसे संभाल के रखा। काम पर जाते समय अपनी चप्पल पहन कर जाता था। बीवी कहती कि जब जूता मिल गया है तो काहे चप्पल पहन के जाते हो, तो मुस्करा के कहता कि अभी रिशदारी में शादी है पहले वहाँ पहन लें नहीं तो काम पर तो खराब हो जाएंगे। अभी दस दिन हैं उसके बाद निकाल लूंगा। सब देख के हैरान हो जायेगे तेरे पति को। और बीवी मुस्कुराने लगती।
सच है गरीब के घर में तो ये छोटी बातें भी खुशियां बन के पूरा घर महका देती हैं। ये बात उसने (जूते ने) इस घर में पहुंचने के बाद ही समझी।
और एक वो दिन था जब वो अपने अमीर मालिक के घर पर था। मालिक उसे अपने पैरों में पहन रहा था तभी उसकी नज़र घर के एक नौकर पर पड़ी जिस पर वो किसी कारण से गुस्सा था। अमीर ने आव देखा न ताव और घुमा के उस नौकर पर अपने जूते को दे मारा, एक हथियार की तरह। इज़्ज़त तो इस गरीब मज़दूर के यहाँ ही मिली। रिश्तेदार के यहाँ शादी का दिन भी आया। मेरे नए साथी ने मुझे बड़े प्यार से उठाया और पोलिश लगाई। मुझे चमका कर बड़े प्यार से पहना और चल दिया थोड़ा अकड़ते हुए। उसकी अकड़ देखते ही बनती थी। बीवी ने बड़े ध्यान से देखा और मुस्कुराते हुए बोली, “आज तो शादी में तुम ही नज़र आओगे। तुम्हारे जूते तो देख कर लोग जल जाएंगे।” वो थोड़ा और अकड़ के चलने लगा। उस दिन उस जूते की भी खुशी का ठिकाना नहीं था। इतना प्यार, इतनी देखभाल तो उसे भी कभी नहीं मिली थी। जब वो मज़दूर शादी में पहुंचा तो लोग उसे ध्यान से देख रहे थे, खासकर उसके जूते को। और वो भी सीना ताने घूम रहा था। शादी से जब वापस घर आया तो बड़ा खुश था। बीवी से बोला कि इस जूते ने इज़्ज़त रख ली और फिर संभाल के ऐसे रख दिया जैसे कि उसके पास ये सबसे कीमती चीज़ हो। उधर मंदिर के बाहर ये जूता ये सब कुछ सोच रहा था और मन ही मन समझ रहा था कि आगे जा के उस चमकदार जूते के साथ भी यही होना था। वो फिर पुरानी बातों में खो गया। उसे याद आया कि पहली बार जब काम पर जाने के लिए मज़दूर ने उसे पहना तो कितना दुखी था। बीवी से बोला कि काम पर पथरीली और मिट्टी भरी ज़मीन पर यह बहुत जल्दी खराब हो जाएगा, लेकिन क्या करूँ चप्पल टूट गई है अब तो पहनना ही पड़ेगा। बीवी बोली कि अब क्या कर सकते हैं पहनो। उसके बाद ये जूता मज़दूरी करने लगा। कभी मिट्टी लग जाती तो कभी कंक्रीट का कोई टुकड़ा चुभ जाता। लेकिन फिर भी जूता इस गरीब के साथ खुश था क्योंकि जैसे ही जूते को नुकसान होता ये गरीब तुरंत बड़े प्यार से मरम्मत कराता और लंबी ज़िन्दगी की दुआ करता।
और जूता भी इसीलिए पूरी शिद्द्त से साथ निभाता था और कांटो से बचाकर रखता था।
सोच में ही डूबा था और ईश्वर को धन्यवाद दे रहा था कि उसने इतना प्यार करने वाला साथी दिया कि देखा कि मज़दूर आ गया और बड़े प्यार से उसे पहना और चल दिया। घर पहुंचते ही सबसे पहले उसे उतारा और ऊपर पड़ी धुल को झाड़ कर सम्हाल कर रख दिया।
उम्मीद है कि ये लघुकथा आपको पसंद आई होगी। ये महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि समाज में मानवीय संवेदनाएं मरती जा रही हैं और ये कहानी प्रयास है उन मानवीय संवेदनाओं को जगाने का।
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