अनुवादक की कलम से

अनुवादक की कलम से

प्रिय पाठकों,
नमस्कार!
"The god factor" पुस्तक के सन्दर्भ में लिखते वक़्त मेरे मन में एक हिचक हो रही है कि मैं इस अनुदित पुस्तक का अनुवादक हूँ, अतः इस पुस्तक की प्रशंसा को आप क्या समझेंगे? इस प्रश्न के साथ मैं थोड़ा सशंकित हूँ। किन्तु अगर आप ध्यान दें तो आप पाएँगे कि मैं इस पुस्तक को पढ़ने वाला एक पाठक पहले हूँ, अनुवादक बाद में, अतः इस सफाई के आगे मैं इस पुस्तक पर लिख रहा हूँ।
मैं इस पुस्तक की समीक्षा करने नहीं जा रहा। क्योंकि पुस्तक की समीक्षा के लिए जिस कोटि की शास्त्र निपुणता, साहित्यिक सामर्थ्य, विशाल ज्ञान से परिपूर्ण पाण्डित्य और आचार्यत्व चाहिए वो मुझमें  नहीं है। मैं मात्र एक पाठक की दृष्टि से कहना चाहता हूँ कि "द गॉड फैक्टर" एक पुस्तक नहीं, एक कुन्जी है। एक ऐसी कुन्जी जो जब कभी भी चिन्ता, आवेश या वासना घेरे तो एक पुस्तक पढ़ने के वक़्त ही जो अचेतन में एक अभिप्रेरणा संचित हो जाती है, उस भाव को महत्व देते हुए, मनोदशा के उन क्षणों में "द गॉड फैक्टर" के पन्ने जरूर उलट लेने चाहिए। यह वाक्य आपको अतिशयोक्ति लग सकती है। लग सकता है कि मैं उपनिषद, पवित्र बाईबल, बुद्ध के पिटकों, धर्मग्रंथों से भी महान रचना के रूप में "द गॉड फैक्टर" को प्रतिस्थापित कर रहा हूँ। नहीं!
ऐसा बिल्कुल नहीं है। दरअसल यह पुस्तक उन धर्मग्रंथों के सामने प्रतियोगी बनकर नहीं अपितु उनकी सहयोगी बनकर खड़ी होती है। जैसे मुंडककरिका उपनिषद के प्रसिद्ध श्लोक का उदाहरण लें-
"नान्तः प्रज्ञम न बहिष्प्रज्ञम नोभयतः प्रज्ञम न प्रज्ञानघनमं न प्रज्ञम ना प्रज्ञम।
अदृष्टमव्यवहार्यमग्राह्यमलक्षणमचिंत्यमव्यपदेशयमेकात्मप्रत्ययसारं प्रपंचोपशमं शान्तं शिवमद्वैतं चतुर्थ मन्यते स आत्मा स् विज्ञेयः !!७!!"
अर्थात न तो अन्तःप्रज्ञ है, न ही बहिष्प्रज्ञ है, न ही दोनों तरह की प्रज्ञा वाला है (जागृतावस्था बहिष्प्रज्ञवस्था है, स्वप्नावस्था अन्तःप्रज्ञवस्था, सुषुप्ति घनप्रज्ञवस्था है)
न ही घनप्रज्ञ है, न ही प्रज्ञ है, न ही अप्रज्ञ है। जिसका लक्षण सम्भव नहीं (जैसे लक्षण याने परिभाषा, जैसे त्रिभुज तीन भुजाओं से घिरी आकृति।) अतः वह अलक्षण या अपरिभाष्य है। उसका नामकरण सम्भव नहीं है। वह स्वयं ही स्वयं का प्रत्यय है याने किसी भी वस्तु से उसका सादृश्य या असदृश्य नहीं है। समस्त प्रपंच (जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति या मायिक जगत) का उपशम(शांति) रूप है। शांत है, शिव है,अद्वैत है, चतुर्थ है। (जागृत, स्वप्न,सुषुप्ति से चतुर्थ)
यदि आप मेरी प्रस्तावना पढ़कर पुस्तक को पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि नितिन सर उसी चतुर्थ सत्ता जो शब्दों के परे है, की ओर उन्मुख होने की बात करते हैं। लेकिन उस भाषा मे नहीं जिनमें उपनिषद करते हैं। न ही उन प्रज्ञानुभूतियों के संदर्भ में जिनके सूक्ष्म अनुभव हम-आप विचार में नहीं ला पाते। अपितु ओशो की तरह, प्रेमचंद की तरह, परसाई की तरह, सरल व्यख्यात्मक शैली में लघुकथाओं के साथ, सामान्य जीवन के अनुभवों के साथ उस अनिर्वचनीय चतुर्थ की बात करते हैं। यह पुस्तक उसी चतुर्थ (आत्म-सत्ता) के शाश्वत सत्य को अवलंबित करके लिखी गयी है लेकिन स्वानुभूत सत्यों और साधारण व्यक्तियों के अनुभवों की नए दृष्टिकोण से व्याख्या पुस्तक को नवीनता और जीवन्त बनाती है।
इस पुस्तक की सबसे विशिष्ट बात ये है कि यह पुस्तक लघुकथाओं में बहती हुई, कोरी कल्पनात्मकता की उड़ान में उड़ता साहित्य नहीं बन जाती।"द गॉड फैक्टर" वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बेहद सटीक उदाहरणों को स्वयं में समाविष्ट किये है। यह वास्तव में एक विज्ञान के शिक्षक द्वारा, आध्यात्मिक विषय पर लिखी हुई कलात्मक पुस्तक है।
अब रही बात अनुवाद की तो मैं इंजीनियरिंग स्नातक के दौरान नितिन सर का छात्र रहा हूँ, साहित्य रुचि से पढ़ता, लिखता हूँ। सो अनुवाद में त्रुटियों की संभावना से इंकार नहीं कर सकता। साथ-साथ इस एक बहाने के पीछे मैं आपके सामने एक फूहड़ अनुवाद नहीं रख रहा हूँ। मैंने भाषा और शैली का विशेष ध्यान रखा है। तत्सम शब्दों के प्रयोग से बचने की कोशिश की है, ताकि भाषा स्पष्ट और सरल रहे, किन्तु कहीं-कहीं यदि ऐसा हुआ भी है तो मात्र इसलिए कि पुस्तक की सम्प्रेषणीयता निष्प्रभावित रहे।
अंततः इतना ही कहना चाहूंगा कि यह पुस्तक आप जितनी बार पढ़ेंगे, ये आपको हर बार नए अर्थ देगी।
नितिन सर मेरे अध्यापक हैं, उन्होंने मुझे इस पुस्तक के अनुवाद का कार्य देकर मुझे गौरवान्वित किया है। मैं उनका आभारी हूँ। मैं नितिन सर को इस पुस्तक की सफलता की कोटिशः शुभकामनायें देता हूँ।"
अब मैं अपनी समस्त सीमाओं और लघुताओं के साथ पीछे हटता हूँ, आपकी इस पुस्तक के साथ साहित्यिक यात्रा के लिए शुभेच्छाओं सहित!"-
"प्रशान्त"



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